हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए; ग़ुरूर छोड़ दो ऐ ग़ाफ़िलो ख़ुदा के लिए; गिरा दिया है हमें किस ने चाह-ए-उल्फ़त में; हम आप डूबे किसी अपने आशना के लिए; जहाँ में चाहिए ऐवान ओ क़स्र शाहों को; ये एक गुम्बद-ए-गर्दूं है बस गदा के लिए; वो आईना है के जिस को है हाजत-ए-सीमाब; इक इज़्तिराब है काफ़ी दिल-ए-सफ़ा के लिए; तपिश से दिल का हो क्या जाने सीने में क्या हाल; जो तेरे तीर का रोज़न न हो हवा के लिए; जो हाथ आए ज़फ़र ख़ाक-पा-ए-फ़ख़रूद्दीन; तो मैं रखूँ उसे आँखों के तूतया के लिए।

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