हस्ती अपनी​...हस्ती अपनी हुबाब की सी है​;​ये नुमाइश सराब की सी है​;​​​नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए​;​हर एक पंखुड़ी गुलाब की सी है​;​चश्मे-दिल खोल इस भी आलम पर​​;​ याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है​;​​​​​बार-बार उस के दर पे जाता हूँ​;​हालत अब इज्तेराब की सी ​है;​​ ​​ मैं जो बोला कहा के ये आवाज़​ ;​​ उसी ख़ाना ख़राब की सी​;​​​​​ मीर उन नीमबाज़ आँखों में​;​ सारी मस्ती शराब की सी है।

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