होशियारी दिल-ए-नादान... होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है; रंज कम सहता है एलान बहुत करता है; रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चिराग; कम से कम रात का नुकसान बहुत करता है; आज कल अपना सफर तय नहीं करता कोई; हाँ सफर का सर-ओ-सामान बहुत करता है; अब ज़ुबान खंज़र-ए-कातिल की सना करती है; हम वो ही करते है जो खल्त-ए-खुदा करती है; हूँ का आलम है गिराफ्तारों की आबादी में; हम तो सुनते थे की ज़ंज़ीर सदा करती है।

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