​आँखों के इंतज़ार ​को...​​​​​​आँखों के इंतज़ार ​को दे कर हुनर चला गया​;​​चाहा था एक शख़्स को जाने किधर चला गया​;​​​​​दिन की वो महफिलें गईं रातों के रतजगे गए​;​​कोई समेट कर मेरे शाम-ओ-सहर चला गया​;​​​​​झोंका है एक बहार का रंग-ए-ख़याल यार भी​;​​हर-सू बिखर-बिखर गई ख़ुशबू जिधर चला गया​;​​​​​उसके ही दम से दिल में आज धूप भी चाँदनी भी है​;​​देके वो अपनी याद के शम्स-ओ-क़मर चला गया;​​कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर कब से भटक रहा है दिल​;​हमको भुला के राह वो अपनी डगर चला गया।

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