​क्यूँ तबीअत कहीं​...​​​​क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं​;​​​दोस्ती तो उदास करती नहीं​;​​​​​हम हमेशा के सैर-चश्म सही​;​​​तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं​;​​​​​शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह​;​​​कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं​;​​​​ये मोहब्बत है सुन ज़माने सुन​;​​​ इतनी आसानियों से मरती नहीं​;​​जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़​;​जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं​।

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