क्यूँ तबीअत कहीं...क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं;दोस्ती तो उदास करती नहीं;हम हमेशा के सैर-चश्म सही;तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं;शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह;कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं;ये मोहब्बत है सुन ज़माने सुन; इतनी आसानियों से मरती नहीं;जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़;जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं।
Like (0) Dislike (0)
Your Comment