​रोने से और इश्क़ में... रोने से और् इश्क़ में बेबाक हो गए; धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए; सर्फ़-ए-बहा-ए-मै हुए आलात-ए-मैकशी; थे ये ही दो हिसाब सो यों पाक हो गए; रुसवा-ए-दहर गो हुए आवार्गी से तुम; बारे तबीयतों के तो चालाक हो गए; कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर; पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए; पूछे है क्या वजूद-ओ-अदम अहल-ए-शौक़ का; आप अपनी आग से ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गए; करने गये थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला; की एक् ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए; इस रंग से उठाई कल उस ने असद की नाश; दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए।

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