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Narazgi Shayari
अभी शीशा हूँ सबकी आँखों में
अभी शीशा हूँ सबकी आँखों में
अभी शीशा हूँ सबकी आँखों में चुभता हूं
जब आईना बनूँगा सारा जहाँ देखेगा
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संगे मरमर की तू बात न
जब महसूस हो कि सारा शहर
टूटे हुवे सपनो और रूठे हुवे
नहीं मिला कोई तुम जैसा आज
आज कल अपना लास्ट सीन तक
कश्ती मुहब्बत की वो पतवार दुर
मोहब्बत ना सही मुकदमा ही कर
इतनी मनमानियाँ भी अच्छी नहीं होतीतुम
आँखों के सागर में ये जलन
कांटों पर चलने वाले अपनी मंजिल
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