उल्फत का जब किसी ने लिया नाम रो पड़े
अपनी वफा का सोच के अन्जाम रो पड़े
हर शाम ये सवाल महोब्बत से क्या मिला
हर शाम ये जवाब की हर शाम रो पड़े
राह-ऐ-वफा में हमको खुशी की तलाश धी
दो कदम ही चले थे की हर कदम रो पड़े
रोना नसीब में है तो औरों से क्या गिला
अपने ही सिर लिया कोई इल्जाम रो पड़े

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