निगाहों में मंज़िल थी; गिरे और गिर कर संभलते रहे; हवाओं ने तो बहुत कोशिश की; मगर चिराग आँधियों में भी जलते रहे।
Like (0) Dislike (0)
निगाहों में मंज़िल थी; गिरे और गिर कर संभलते रहे; हवाओं ने तो बहुत कोशिश की; मगर चिराग आँधियों में भी जलते रहे।
Your Comment