वो ज़ालिम मेरी हर ख्वाहिश ये कह कर टाल जाता है;दिसम्बर जनवरी में कौन नैनीताल जाता है;मुनासिब है कि पहले तुम भी आदमखोर बन जाओ;कहीं संसद में खाने कोई चावल दाल जाता है।
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वो ज़ालिम मेरी हर ख्वाहिश ये कह कर टाल जाता है;दिसम्बर जनवरी में कौन नैनीताल जाता है;मुनासिब है कि पहले तुम भी आदमखोर बन जाओ;कहीं संसद में खाने कोई चावल दाल जाता है।
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