शाम ढलते ढलते साया भी साथ छोड़ देता है
अब और कहाँ किसी का भी ऐतबार रहता है
आज कल वक़्त से निकल जाता हूँ घर के लिए
वहां मेरी तन्हाईओं को मेरा इंतज़ार रहता है
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शाम ढलते ढलते साया भी साथ छोड़ देता है
अब और कहाँ किसी का भी ऐतबार रहता है
आज कल वक़्त से निकल जाता हूँ घर के लिए
वहां मेरी तन्हाईओं को मेरा इंतज़ार रहता है
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