हथेली पर रखकर नसीब अपना क्यों हर शख्स मुकद्दर ढूँढ़ता है; अजीब फ़ितरत है उस समंदर की जो टकराने के लिए पत्थर ढूँढ़ता है।
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हथेली पर रखकर नसीब अपना क्यों हर शख्स मुकद्दर ढूँढ़ता है; अजीब फ़ितरत है उस समंदर की जो टकराने के लिए पत्थर ढूँढ़ता है।
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