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कितने झूठे हो गये है हमबच्चपन
कितने झूठे हो गये है हमबच्चपन
कितने झूठे हो गये है हम
बच्चपन में अपनों से भी रोज रुठते थे आज दुश्मनों से भी मुस्करा के मिलते है
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तुमसे दूरी का एहसास जब सताने
मोहब्बत ना सही मुकदमा ही कर
कस्तियाँ रह जाती हैं तूफान चले
यादों में आपके तनहा बैठे हैं;
"कर लेता हूँ बर्दाश्त हर दर्द
कब्र के सन्नाटे में से एक
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