हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली; कुछ यादें मेरे संग पाँव पाँव चली; सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ; वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।
Like (0) Dislike (0)
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली; कुछ यादें मेरे संग पाँव पाँव चली; सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ; वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।
Your Comment