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Sad Shayari
न लफ़्ज़ों का लहू निकलता है
न लफ़्ज़ों का लहू निकलता है
न लफ़्ज़ों का लहू निकलता है न किताबें बोल पाती हैं
मेरे दर्द के थे दो गवाह दोनों बे-जुबान निकले
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कोई इल्जाम रह गया हो तो
तेरे प्यार का सिला हर हाल
हम जब दिन की शुरुआत करते
मुसीबतो से उभरती है शख्सियत यारोजो
इश्क मुहब्बत क्या है मुझे नही
तेरी नफरत में वो दम कहाँ
ना पुंछ मेरी तन्हाइ के आलम
शायरों की महफ़िलों में हम इसलिए
वो जान गयी थी हमें दर्द
आज जिस्म मे जान है तो
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