हसरत-ए-दीदार के लिये जब होइ हमारी तमन्ना; उसकी गली मे हमने मोबाईल की दुकान खोली; मत पूछो अब हालात-ए-बेबसी का ऐ गालिब; के रोज़ एक नया शख्स उनके नम्बर पे रीचार्ज़ करवानें आता है।
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हसरत-ए-दीदार के लिये जब होइ हमारी तमन्ना; उसकी गली मे हमने मोबाईल की दुकान खोली; मत पूछो अब हालात-ए-बेबसी का ऐ गालिब; के रोज़ एक नया शख्स उनके नम्बर पे रीचार्ज़ करवानें आता है।
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