डरता हूँ कहीं मैं पागल न बन जाऊँ; तीखी नज़र और सुनहरे रूप का कायल ना बन जाऊँ; अब बस भी कर ज़ालिम कुछ तो रहम खा मुझ पर; चली जा मेरी नज़रों से दूर कहीं मैं शायर ना बन जाऊं।

Your Comment Comment Head Icon

Login