आगे तो परीजाद ये रखते थे हमें घेर; आते थे चले आप जो लगती थी ज़रा देर; सो आके बुढ़ापे ने किया हाय ये अंधेरे; जो दौड़ के मिलते थे वो अब हैं मुंह फेर।
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आगे तो परीजाद ये रखते थे हमें घेर; आते थे चले आप जो लगती थी ज़रा देर; सो आके बुढ़ापे ने किया हाय ये अंधेरे; जो दौड़ के मिलते थे वो अब हैं मुंह फेर।
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