क्यों जुड़ता है तू इस जहान से एक दिन ये गुज़र ही जायेगा; चाहे कितना भी समेट ले तू इस जहान को मुट्ठी से तो एक दिन फिसल ही जायेगा।
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क्यों जुड़ता है तू इस जहान से एक दिन ये गुज़र ही जायेगा; चाहे कितना भी समेट ले तू इस जहान को मुट्ठी से तो एक दिन फिसल ही जायेगा।
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