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Taarif Shayari
कितना आसां था तेरे हिज्र में
कितना आसां था तेरे हिज्र में
कितना आसां था तेरे हिज्र में मरना जाना; फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते-जाते। हिज्र: जुदाई
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किसी को ये सोचकर साथ मत
तमन्ना से नहीं तन्हाई से डरते
तुम ना समझोगे इस तन्हाई के
दिल की धड़कनो को एक लम्हा
ज़ुबान खामोश आँखों में नमी होगी;
लोग कहते हैं किसी के चले
लोग कहते हैं किसी एक के
थी वस्ल में भी फ़िक्रएजुदाई तमाम
जिनके मिलते ही ज़िन्दगी में ख़ुशी
लम्हें जुदाई को बेकरार करते हैं;
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