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Taarif Shayari
क्या बटवारा था हाथ की लकीरों
क्या बटवारा था हाथ की लकीरों
क्या बटवारा था हाथ की लकीरों का भी
उसके हिस्से में प्यार मेरे हिस्से में इंतज़ार
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किस किस को बताएँगे जुदाई का
"बादल कितने खुशनसीब हैंदूर रहकर भी
मंजिल ढूंढ़ते ढूंढ़ते आज मुझे एहसास
तमन्ना से नहीं तनहाई से डरते
हर घड़ी सोचते हैं भलाई तेरी;
जिसने हमको चाहा उसे हम चाह
आँखों में आंसुओ को उभरने ना
ज़ुबान खामोश आँखों में नमी होगी;
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