उम्रे-दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन; दो आरज़ू में कट गए दो इंतज़ार में।

कितना समझाया इस दिल को कि तू प्यार ना कर; किसी के लिए ख़ुद को तू बेकरार ना कर; वो तेरा नही बन सकता किसी और की अमानत का तू इंतज़ार ना कर।

कौन आता है मगर आस लगाए रखना; उम्र भर दर्द की शमाओं को जलाए रखना।

कुछ रोज़ यह भी रंग रहा तेरे इंतज़ार का; आँख उठ गई जिधर बस उधर देखते रहे।

तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है; कि हमको तेरा नहीं इंतज़ार अपना है।

तुम आओ कभी दस्तक तो दो दर-ए-दिल पर; प्यार पहले से कम हो तो सज़ा-ए-मौत दे देना।

हमे उनका इंतज़ार था उनको किसी और का
हम भूले नही आजतक उनको
वो हमे कब के भूले बैठे है

देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आये तो; आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराये तो।

हम उनको मनाने जायेंगे उनकी उम्मीद ग़ज़ब की है; वे खुद चलकर आयेंगे हमारी भी जिद्द ग़ज़ब की है।

नज़रें मेरी थक न जायें कहीं तेरा इंतज़ार करते-करते; यह जान मेरी यूँ ही निकल ना जाये तुम से इश्क़ का इज़हार करते-करते।

कोई शाम आती है आपकी याद लेकर; कोई शाम जाती है आपकी याद देकर; हमें तो इंतज़ार है उस हसीन शाम का; जो आये कभी आपको साथ लेकर।

आज तक है उसके लौट आने की उम्मीद; आज तक ठहरी है ज़िंदगी अपनी जगह; लाख ये चाहा कि उसे भूल जायेँ पर; हौंसले अपनी जगह बेबसी अपनी जगह।

कोई मिलता ही नहीं हमसे हमारा बनकर; वो मिले भी तो एक किनारा बनकर; हर ख्वाब टूट के बिखरा काँच की तरह; बस एक इंतज़ार है साथ सहारा बनकर।

वो कह कर गया था मैं लौटकर आउंगा; मैं इंतजार ना करता तो क्या करता; वो झूठ भी बोल रहा था बड़े सलीके से; मैं एतबार ना करता तो क्या क्या करता।

कब उनकी पलकों से इज़हार होगा; दिल के किसी कोने में हमारे लिए प्यार होगा; गुज़र रही है रात उनकी याद में; कभी तो उनको भी हमारा इंतज़ार होगा!