ना वो मिलती है, ना मैं रुकता हूँ;
पता नहीं रास्ता गलत है, या मंजिल!

अजिब रिशता रहा मेरा अपनो से
ना नफरत कि वजह मिली ना प्यार का सिला

हर रोज हर वक़्त तेरा ही ख्याल
ना जाने किस कर्ज की क़िस्त हो तुम।

कागज़ पे लिखी गज़ल बकरी चबा गयी
चर्चा पूरे शहर में बकरी शेर खा गयी

हम अल्फ़ाज़ों के इंतज़ार में थे
उन्होंने खामोशी से वार कर दिया

जो तालाबों पर चौकीदारी करते हैँ
वो समन्दरों पर राज नहीं कर सकते

सुनो तुम ही थामलो मुझे
सब ने तन्हा छोङ दिया मुझे तुम्हारा समझकर

मैंने तुझे शब्दों में महसूस किया है
लोग तो तस्वीर पसंद करते हैं

इश्क़ का पासपोर्ट बनवा दे कोई
मुझे भी महोब्बत के देश मैं घूमना है

तुम्हे ये पहेली बारीश मुबारक
हम तो आशुओ की बारिश में रोज़ भीगते ह

इतना तो किसी ने चाहा भी न होगा
जितना मैंने सिर्फ सोचा है तुम्हें

तुम पढते हो इसलिए लिखता हूँ
वरना कलम से अपनी कुछ ख़ास दोस्ती नहीं

उँगलियाँ आज भी इसी सोच में गुम है
उसने किस तरह नए हाथ को थामा होगा

पूछते थे ना की कितना प्यार है तुमसे
लो अब गीन लो ये बारिश की बुँदे

कभी उदास बेठे हो तो बताना पागल
हम फिर से दिल दे देंगे खेलने के लिए