तुम्हारे चाँद से चेहरे पे ग़म अच्छे नहीं लगते; हमें कह दो चले जाओ जो हम अच्छे नहीं लगते; हमें वो ज़ख्म दो जाना जो सारी उम्र ना भर पायें; जो जल्दी भर के मिट जाएं वो ज़ख्म अच्छे नहीं लगते।

दर्द आँखों में झलक जाता है पर होंठों तक नहीं आता; ये मज़बूरी है मेरे इश्क़ की जो मिलता है खो जाता है; उसे भूलने का जज़्बा तो हर रोज़ दिल में आता है; पर कैसे भुला दे दिल हर जर्रे में उसको पाता है।

खुशबु की तरह साथ लगा ले गयी हम को; कूचे से तेरे बाद-ए-सबा ले गयी हम को; पत्थर थे कि गौहर थे अब इस बात का क्या ज़िक्र; इक मौज बहर-हाल बहा ले गयी हम को। शब्दार्थ: बाद-ए-सबा = सुबह की ठंडी हवा गौहर = मोती

यार कल रात घर देर से पहुचा बेल बजाई पर बीबी ने दरवाजा खोला ही नही पूरी रात सडक पर गुजारी
दोस्त : फिर सुबह बीबी की खबर ली के नही
नही यार सबेरे याद आया बीबी तो मायके गई है और चाबी तो जेब मे थी

लोगों से कह दो हमारी तक़दीर से जलना छोड़ दें; हम घर से खुदा की दुआ लेकर निकलते हैं; कोई न दे हमें खुश रहने की दुआ तो भी कोई बात नहीं; वैसे भी हमें खुशियां रास नहीं अक्सर इस वजह से लोग छूट जाते हैं।

कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा; वो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा; वो तेरे नसीब की बारिशें किसी और छत पे बरस गई; दिल-ए-मुंतज़िर मेरी बात सुन उसे भूल जा उसे भूल जा।

मैंने पत्थरों को भी रोते देखा है झरने के रूप में; मैंने पेड़ों को प्यासा देखा है सावन की धूप में; घुल-मिल कर बहुत रहते हैं लोग जो शातिर हैं बहुत; मैंने अपनों को तनहा देखा है बेगानों के रूप में।

जो आँसू दिल में गिरते हैं वो आँखों में नहीं रहते; बहुत से हर्फ़ ऐसे होते हैं जो लफ़्ज़ों में नहीं रहते; किताबों में लिखे जाते हैं दुनिया भर के अफ़साने; मगर जिन में हकीकत हो किताबों में नहीं रहते।

किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे; गुज़र गयी जरस-ए-गुल उदास करके मुझे; मैं सो रहा था किसी याद के शबिस्ताँ में; जगा के छोड़ गए काफिले सहर के मुझे। शब्दार्थ: जरस-ए-गुल = फूलों की लड़ी शबिस्ताँ = बिस्तर

जो मेरा था वो मेरा हो नहीं पाया; आँखों में आंसू भरे थे पर मैं रो नहीं पाया; एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि; हम मिलेंगे ख़्वाबों में पर मेरी बदकिस्मती तो देखिये; उस रात तो मैं ख़ुशी के मारे सो भी नहीं पाया।

अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ; इस दिल की झील सी आँखों में एक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआ; यह हिज्र-हवा भी दुश्मन है उस नाम के सारे रंगों की; वो नाम जो मेरे होंठों पर खुशबू की तरह आबाद हुआ।

बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती है; यह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती है; तड़प उठता हूँ दर्द के मारे ज़ख्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती है; अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ; मुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है।

हर इन्शान को भगवान् ने जिंदगी की
ट्रेन का कंफर्म टिकट के साथ रिटर्न
टिकट भी दिया था जिसे आप न
भूले..... और जीवन की यात्रा को
सौहार्दपूर्ण बनाये - जिससे आपका
संस्मरण एक यादगार बन जाए - न की
कष्टदायी...!

मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में वो शक्ल पिघली तो हर शय में ढल गयी जैसे अजीब बात हुई है उसे भुलाने में जो मुंतज़िर ना मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा कि हमने देर लगा दी पलट के आने में।

दोस्ती जब किसी से की जाये तो दुश्मनों की भी राय ली जाये; मौत का ज़हर है फिज़ाओं में अब कहाँ जा कर सांस ली जाये; बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ कि ये नदी कैसे पार की जाये; मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे हैं आज फिर कोई भूल की जाये।