तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहाँ तक देखूँ; हुस्न-ए-यज़्दां से तुझे हुस्न-ए-बुतां तक देखूं; तूने यूं देखा है जैसे कभी देखा ही न था; मैं तो दिल में तेरे क़दमों के निशां तक देखूँ; सिर्फ़ इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें; मै तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयां तक देखूँ; वक़्त ने ज़ेहन में धुंधला दिये तेरे खद्द-ओ-खाल; यूं तो मैं तूटते तारों का धुआं तक देखूँ; दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता; मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ; एक हक़ीक़त सही फ़िरदौस में हूरों का वजूद; हुस्न-ए-इन्सां से निपट लूं तो वहाँ तक देखूँ।

कभी मुझ को साथ लेकर कभी मेरे साथ चल के; वो बदल गए अचानक मेरी ज़िन्दगी बदल के; हुए जिस पे मेहरबाँ तुम कोई ख़ुशनसीब होगा; मेरी हसरतें तो निकलीं मेरे आँसूओं में ढल के; तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के क़ुर्बाँ दिल-ए-ज़ार ढूँढता है; वही चम्पई उजाले वही सुरमई धुंधल के; कोई फूल बन गया है कोई चाँद कोई तारा; जो चिराग़ बुझ गए हैं तेरी अंजुमन में जल के; मेरे दोस्तो ख़ुदारा मेरे साथ तुम भी ढूँढो; वो यहीं कहीं छुपे हैं मेरे ग़म का रुख़ बदल के; तेरी बेझिझक हँसी से न किसी का दिल हो मैला; ये नगर है आईनों का यहाँ साँस ले संभल के।

ये चिराग़ बे नज़र है ये सितारा बेज़ुबाँ है; अभी तुझसे मिलता जुलता कोई दूसरा कहाँ है; वही शख़्स जिसपे अपने दिल-ओ-जाँ निसार कर दूँ; वो अगर ख़फ़ा नहीं है तो ज़रूर बदगुमाँ है; कभी पा के तुझको खोना कभी खो के तुझको पाना; ये जनम जनम का रिश्ता तेरे मेरे दरमियाँ है; मेरे साथ चलनेवाले तुझे क्या मिला सफ़र में; वही दुख भरी ज़मीं है वही ग़म का आस्माँ है; मैं इसी गुमाँ में बरसों बड़ा मुत्मइन रहा हूँ; तेरा जिस्म बेतग़ैय्युर है मेरा प्यार जाविदाँ है; उंहीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे; मुझे रोक रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है।

​मेरी ख़्वाहिश है कि... ​मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊँ; माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊँ; कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर; ऐसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ; सोचता हूँ तो छलक उठती हैं मेरी आँखें; तेरे बारे में न सोचूं तो अकेला हो जाऊँ; चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन; क्या ज़रूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊँ; बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं; शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊँ; शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती; मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊँ।

हमारा दिल सवेरे का... हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए; चिरागों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए; मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुजरता हूँ; कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए; अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर; मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए; समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको; हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए; मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा; परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए; उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो; न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए।

हम ही में थी न कोई बात... हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके; तुम ने हमें भुला दिया हम न तुम्हें भुला सके; तुम ही न सुन के अगर क़िस्सा-ए-ग़म सुनेगा कौन; किस की ज़बान खुलेगी फिर हम न अगर सुना सके; होश में आ चुके थे हम जोश में आ चुके थे हम; बज़्म का रंग देख कर सर न मगर उठा सके; रौनक़-ए-बज़्म बन गए लब पे हिकायतें रहीं; दिल में शिकायतें रहीं लब न मगर हिला सके; शौक़-ए-विसाल है यहाँ लब पे सवाल है यहाँ; किस की मजाल है यहाँ हम से नज़र मिला सके; अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल; कौन तेरी तरह हफ़ीज दर्द के गीत गा सके।

फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया; अच्छा भला इक शहर वीरान हो कर रह गया; हर नक्श बतल हो गया अब के दयार-ए-हिज्र में; इक ज़ख्म गुज़रे वक्त की पहचान हो कर रह गया; रुत ने मेरे चारों तरफ खींचें हिसार-ए-बाम-ओ-दर; यह शहर फिर मेरे लिए ज़ान्दान हो कर रह गया; कुछ दिन मुझे आवाज़ दी लोगों ने उस के नाम से; फिर शहर भर में वो मेरी पहचान हो कर रह गया; इक ख्वाब हो कर रह गई गुलशन से अपनी निस्बतें; दिल रेज़ा रेज़ा कांच का गुलदान हो कर रह गया; ख्वाहिश तो थी साजिद मुझे तशीर-ए-मेहर-ओ-माह की; लेकिन फ़क़त मैं साहिब-ए-दीवान हो कर रह गया।

फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया; अच्छा भला इक शहर वीरान हो कर रह गया; हर नक्श बतल हो गया अब के दयार-ए-हिज्र में; इक ज़ख्म गुज़रे वक्त की पहचान हो कर रह गया; रुत ने मेरे चारों तरफ खींचें हिसार-ए-बाम-ओ-दर; यह शहर फिर मेरे लिए ज़ान्दान हो कर रह गया; कुछ दिन मुझे आवाज़ दी लोगों ने उस के नाम से; फिर शहर भर में वो मेरी पहचान हो कर रह गया; इक ख्वाब हो कर रह गई गुलशन से अपनी निस्बतें; दिल रेज़ा रेज़ा कांच का गुलदान हो कर रह गया; ख्वाहिश तो थी साजिद मुझे तशीर-ए-मेहर-ओ-माह की; लेकिन फ़क़त मैं साहिब-ए-दीवान हो कर रह गया।

जो ख्याल थे न कयास थे... जो ख्याल थे न कयास थे वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए; जो मोहब्बतों की आस थे वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए; जिन्हें मानता नहीं ये दिल वो ही लोग मेरे हैं हमसफ़र; मुझे हर तरह से जो रास थे वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए; मुझे लम्हा भर की रफ़ाक़तों के सराब बहुत सतायेंगे; मेरी उम्र भर की प्यास थे वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए; ये जो जाल सारे है आरजी ये गुलाब सारे है कागजी; गुल-ए-आरजू की जो बास थे वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए; मेरी धडकनों के करीब थे मेरी चाह थे मेरा ख्वाब थे; वो जो रोज़-ओ-शब मेरे पास थे वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए।

कई बार इसका दामन भर दिया हुस्ने-दो-आलम से; मगर दिल है कि उसकी खाना-वीरानी नहीं जाती; कई बार इसकी खातिर ज़र्रे-ज़र्रे का जिगर चीरा; मगर ये चश्म-ए-हैरां जिसकी हैरानी नहीं जाती; नहीं जाती मताए-लाला-ओ-गौहर की गरांयाबी; मताए-ग़ैरत-ओ-ईमां की अरज़ानी नहीं जाती; मेरी चश्म-ए-तन आसां को बसीरत मिल गयी जब से; बहुत जानी हुई सूरत भी पहचानी नहीं जाती; सरे-ख़ुसरव से नाज़-ए-कज़कुलाही छिन भी जाता है; कुलाह-ए-ख़ुसरवी से बू-ए-सुल्तानी नहीं जाती; ब-जुज़ दीवानगी वां और चारा ही कहो क्या है; जहां अक़्ल-ओ-खिरद की एक भी मानी नहीं जाती।

अब किस से कहें और कौन सुने... अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ; इस दिल की झील सी आँखों में इक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआ; ये हिज्र-हवा भी दुश्मन है इस नाम के सारे रंगों की; वो नाम जो मेरे होंठों पे ख़ुशबू की तरह आबाद हुआ; उस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गए; इक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़ुबानी याद हुआ; वो अपने गाँव की गलियाँ थी दिल जिन में नाचता गाता था; अब इस से फ़र्क नहीं पड़ता नाशाद हुआ या शाद हुआ; बेनाम सताइश रहती थी इन गहरी साँवली आँखों में; ऐसा तो कभी सोचा भी न था अब जितना बेदाद हुआ।

ये नाम मुमकिन रहेगा मक़ाम मुमकिन नहीं रहेगा; ग़ुरूर लहजे में आ गया तो कलाम मुमकिन नहीं रहेगा; ये बर्फ़-मौसम जो शहर-ए-जाँ में कुछ और लम्हे ठहर गया तो; लहू का दिल की किसी गली में क़याम मुमकिन नहीं रहेगा; तुम अपनी साँसों से मेरी साँसे अलग तो करने लगे हो लेकिन; जो काम आसाँ समझ रहे हो वो काम मुमकिन नहीं रहेगा; वफ़ा का काग़ज़ तो भीग जाएगा बद-गुमानी की बारिशों में; ख़तों की बातें ख़्वाब होंगी पयाम मुमकिन नहीं रहेगा; ये हम मोहब्बत में ला-तअल्लुक़ से हो रहे हैं तू देख लेना; दुआएँ तो ख़ैर कौन देगा सलाम मुमकिन नहीं रहेगा।