किताबों में हिसाब कहाँ रख सके हम अपना
घाटे की जिंदगी थी घाटे में ही गुज़र गई

किताबों में हिसाब कहाँ रख सके हम अपना
घाटे की जिंदगी थी घाटे में ही गुज़र गई

मेरे चेहरे से जो जाहिर है जरा पढके बता
सुना है मेरे दोस्त तू पढा लिखा बहुत है

साँसों का टूट जाना तो आम बात है दोस्तों
जहाँ अपने बदल जाये मौत तो उसे कहते है

अपने वजूद पर इतना तो यकीन है मुझे
की कोई दूर हो सकता है मुझसे पर भूल नहीं सकता

झुठ बोलकर तो मैं भी दरिया पार कर जाता,
मगर डूबो दिया मुझे सच बोलने की आदत ने…”

वो मैय्यत पे आए मेरी,और झुक के कान में बोले,
सच में मर गए हो या,कोई नया तमाशा है...!!

हर जुर्म पे उठती हैं उँगलियाँ मेरी तरफ
क्या मेरे सिवा शहर में मासूम हैं सारे

उसकी मोहब्बत पे मेरा हक तो नहीं
लेकिन दिल करता है के उमर भर उसका इंतज़ार करूं

अजब ‪#‎ZulM‬ करती है यादेँ आपकी...!!
सो जाऊँ तो जगा देती हे...!
जाग जाऊँ तो रुला देती है...!

यारो
कितने सालों के इंतज़ार का सफर खाक हुआ । उसने जब पूछा “कहो कैसे आना हुआ”।

मेहरबान होकर बुला लो मुझे जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं की फिर आ भी ना सकूँ
Ek Musafi

उठाना खुद ही पडता है थका टूटा बदन अपना
कि जब तक सांस चलती है कोई कंधा नहीं देता

करेगा जमाना कदर हमारी भी एक दिन देख लेना
बस जरा ये भलाई की बुरी आदत छूट जाने दो

जान तक देने की बातें होती है यहाँ….
मगर अफसोस,
लोग दिल से दुआ तक भी नहीं देते…