ऐ दोस्त बांध ले कफन मे व्हिस्की की बोतल कब्र मेँ बैठकर पिया करेगे; इन लङकियो से तो मिली बेवफाई अब चुड़ैलों से सेटिंग किया करेंगे!

तुम क्या जानो शराब कैसे पिलाई जाती है; खोलने से पहले बोतल हिलाई जाती है; फिर आवाज़ लगायी जाती है आ जाओ दर्दे दिलवालों; यहाँ दर्द-ऐ-दिल की दावा पिलाई जाती है!

मयखाने सजे थे जाम का था दौर; जाम में क्या था ये किसने किया गौर; जाम में गम था मेरे अरमानों का; और सब कह रहे थे एक और एक और।

मैं तोड़ लेता अगर तू गुलाब होती; मैं जवाब बनता अगर तू सवाल होती; सब जानते हैं मैं नशा नही करता; मगर मैं भी पी लेता अगर तू शराब होती।

कुछ नशा तो आपकी बात का है; कुछ नशा तो धीमी बरसात का है; हमें आप यूँ ही शराबी ना कहिये; इस दिल पर असर तो आप से मुलाकात का है।

तेरे होठों में भी क्या खूब नशा मिला; यूँ लगता है तेरे जूठे पानी से ही शराब बनती है।

न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है; अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है।

पी के रात को हम उनको भूलने लगे; शराब में गम को मिलाने लगे; दारु भी बेवफ़ा निकली यारों; नशे में तो वो भी याद आने लगे।

नशा हम करते हैं इल्ज़ाम शराब को दिया जाता है; मगर इल्ज़ाम शराब का नहीं उनका है; जिनका चेहरा हमें हर जाम में नज़र आता है।

पैमाना कहे है कोई मय-ख़ाना कहे है; दुनिया तेरी आँखों को भी क्या क्या न कहे है।

पीते थे शराब हम; उसने छुड़ाई अपनी कसम देकर; महफ़िल में गए थे हम; यारों ने पिलाई उसकी कसम देकर।

तोहफे में मत गुलाब लेकर आना; मेरी क़ब्र पर मत चिराग लेकर आना; बहुत प्यासा हूँ अरसों से मैं; जब भी आना शराब लेकर आना।

बड़ी भूल हुई अनजाने में ग़म छोड़ आये महखाने में; फिर खा कर ठोकर ज़माने की फिर लौट आये मयखाने में; मुझे देख कर मेरे ग़म बोले बड़ी देर लगा दी आने में।

मैं उनकी आँखो से छलकती शराब पीता हूँ; गरीब हो कर भी मँहगी शराब पीता हूँ; मुझे नशे में वो बहकने नहीं देते; उन्हें तो खबर ही नहीं कि मैं कितनी शराब पीता हूँ।

नफरतों का असर देखो जानवरों का बटंवारा हो गया; गाय हिन्दू हो गयी और बकरा मुसलमान हो गया; मंदिरो मे हिंदू देखे मस्जिदो में मुसलमान; शाम को जब मयखाने गया तब जाकर दिखे इन्सान!