पतंग सी हैं जिंदगी कहाँ तक जाएगी
रात हो या उम्र एक ना एक दिन कट ही जाएगी

न चाहते हुए भी उसे छोड़कर आना पड़ा
वो इम्तिहान में ना आने वाले सवाल जैसा था

झूठ अगर यह है की तुम मेरे हो
तो यकीन मानो सच मेरे लिए कोई मायने ही नही रखता

मैं उसका हूं ये राज तो वो जान गई है
वो किसकी है ये सवाल मुझे सोने नहीं देता

झुठ बोलकर तो मैं भी दरिया पार कर जाता
मगर डूबो दिया मुझे सच बोलने की आदत ने

भीगी भीगी सी ये जो मेरी लिखावट है
स्याही में थोड़ी सी, अश्कों की मिलावट है.

कुछ इस अदा से तोड़े है ताल्लुक उसने कि
एक मुद्दत से ढूंढ़ रहा हूँ कसूर अपना

उसके हाथ मेँ थे, मेरे खत के हज़ार
टुकङे..... मेरे एक सवाल का वो कितने
जवाब लाई थी

माना की तेरे प्यार का में मालिक नहीं,
पर कीरायेदार का भी कुछ हक्क तो बनता हैं !!

तेरी मजबूरियाँ भी होंगी चलो मान लेते है,....
मगर तेरा वादा भी था मुझे याद रखने का...

अगर वो पूछ लें हम से कि किस बात का गम है
तो फिर किस बात का गम है अगर वो पूछ लें हमसे

बोला था ना कि भाई की एंट्री भले ही लेट होगी
लेकिन साला सबसे ग्रेट होगी देख ले अब

हम दुश्मन को भी बड़ी पवित्र सज़ा देते हैं
हाथ नही उठाते बस नजरो से गिरा देते है

बादशाह नहीं बाजीगर से पहचानते है लोग
क्यूकी हम रानियो के सामने झुका नहीं करते

छोङो ना यार क्या रखा है सुनने और सुनाने मेँ
किसी ने कसर नहीँ छोङी दिल दुखाने मेँ