तुमने तो कहा था मुझे हर पल याद करोगे.,
फिर मेरी हिचकियां बंध क्यूँ हो गयी.!!

दूर गगन में उड़कर भी..लौट आते हैं..!
परिंदे इन्सान की तरह बेपरवाह नही होते...

ख्वाब आँखों से गये नींद रातों से गयी
तुम गये तो लगा जिन्दगी हाथों से गयी

ए मौत जितनी ताकत है उतनी लगाले
मुझे पाने के लिए तुजे भी दुआ माँगनी पड़ेगी

छोटे शहर के अखबार जैसा हूँ मैं
दिल से लिखता हूँ शायद इसीलिए कम बिकता हूँ

बहुत गुमान है तुझे नाम पर अपने मगर
उससे कहीं ज्यादा है कीमत मेरे ईमान की

ठान लिया था कि अब और नहीं लिखेंगे
पर उन्हें देखा और अल्फ़ाज़ बग़ावत कर बैठे

“नसीब का लिखा तो मील ही जायेगा,
या रब,
देना हे तो वो दे जो तकदीर मे ना हो”..!!!

मेरी रूह गुलाम हो गयी तेरे इश्क में शायद
वरना यू छटपटाना तो मेरी आदत न थी

तेरी मोहब्बत को कभी खेल नही समजा
वरना खेल तो इतने खेले है कि कभी हारे नही

इक बात कहूँ इश्क बुरा तो नहीँ मानोगे
बङी मौज के थे दिन तेरी पहचान से पहले

न चाहते हुए भी उसे छोड़कर आना पड़ा
वो इम्तिहान में ना आने वाले सवाल जैसा था

ना जीने का शौक है मरने की तलब रखते हैं
दीवाने हैं हम दीवानगी गजब रखते हैं

मौसम की तरह बदले हैं उसने अपने वादे
ऊपर से ये जिद्द कि तुम मुझ पर यकीन करो

मुझसे अगर पूछना है तो मेरे जज्बात पूछ,
जात और औकात तो सारी दुनिया को पता ह