तेरी वफ़ा के तकाजे बदल गये वरना
मुझे तो आज भी तुझसे अजीज कोई नहीं…!!!

कैसे ना मर मिटे उन पर हम
पगली रूठ कर भी कहती है सुनो संभल के जाना

वक्त के तराजू में अब किसे रखूँ
सांसों का हर रिश्ता वो तोड गया मुझसे

अगर मालूम होता की इतना तड़पाता है इश्क
तो दिल जोड़ने से पहले हाथ जोड़ लेते

अब इस से भी बढ़कर गुनाह-ए-आशिकी क्या होगा
जब रिहाई का वक्त आया तो पिंजरे से मोहब्बत हो चुकी थी
Er kasz

उठाये जो हाथ उन्हें मांगने के लिए,
किस्मत ने कहा, अपनी औकात में रहो।

चीर कर बहा दो लहू, दुश्मन के सीनेका...
यही तो मजा है, हिन्दू होकर जीने का..!!!

मरते तो तुझ पर लाखो होगें
मगर मै तो तेरे साथ जिना चाहता हुं सनम

दोस्ती जब किसी से की जाये दुश्मनों की भी राय ली जाए
बोतलें खोल के तो पि बरसों आज दिल खोल के पि जाए

क्या मंदिर क्या मस्जिद क्या गंगा की धार करे..
वो घर ही मंदिर जैसा है जिसमे औलाद माँ बाप का सत्कार करे

किस बात से ख़फ़ा हो बस इतना बता दो
वज़ह जानकर, हम खुद को सज़ा देना चाहते हैं

मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशी ले लो
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं

बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं
अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती

लिखदे मेरा अगला जनम उसके नाम पे ए खुदा
ईस जनम में ईश्क थोडा कम पड गया है

सुना है वो गुस्से मे हर चीज़ तोड़ देते हैं
मेरा तो दिल है उनके पास, खुदा खैर करे