मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते हो क्यों"मैं खुद
हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो..

"मै तेरी मजबूरिया समझता था इसलिए जाने दिया...
अब तु भी मेरी मजबूरिया समझ और वापस आ जा...!!"

जो मुंह तक उड रही थी अब लिपटी है पैरों से
जरा सी बारिश क्या हुई मिट्टी की फ़ितरत बदल गई

हर "जुर्म" पे उठती हैं उँगलियाँ मेरी तरफ__
क्या "मेरे" सिवा शहर में "मासूम" हैं सारे।

मौत को तो लोग यूहीं बदनाम करते है ।
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तकलीफ तो सुबह सुबह ‪‎ठंडा पानी‬ देता है ।

रेख़ती के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ग़ालिब​;​​​​ कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था।

सबब रोने का अगर पूछे वो तो फक़त इतना कह देना
मुझे हँसना नहीं आता जहाँ पर तुम नहीं होते

" जो तेरी चाह में गुज़री, वही ज़िन्दगी थी,
उस के बाद तो बस, ज़िन्दगी ने गुज़ारा है मुझे"

हमे तो अपनो ने लूटा,
गैरो मे कहा दम था,
मेरे बाफले वही जले,
जहा राखोडा कम था..,😝😝😝😜✋😃

आसरा इक उम्मीद का देके मुझ से मेरे अश्क न छीन
बस यही एक ले दे के बचा है मुझ में मेरा अपना

एक कविता ऐसी लिखूं ,जो तेरी आखों में दिखाई दे
आँखें बंद करू तो तेरी सांसो में सुनाई दे...

अजीब जुल्म करती हैं तेरी यादें मुझ पर; सो जाऊं तो उठा देती हैं जाग जाऊँ तो रुला देती हैं।

जब भी तन्हाई में उनके बगैर जीने की बात आयी; उनसे हुई हर एक मुलाकात मेरी यादों में दौड आई।

जहर के असरदार होने से
कुछ नही होता साहब...
खुदा भी
राजी होना चाहिये मौत देने के लिये...

इंसान की फितरत को समझते हैं ये परिंदे,
कितनी भी मोहब्बत से बुलाना मगर पास नहीं आयेंगे