अनजान बनकर आऐ थे
पहचान देकर चले गऐ
यार बनकर आऐ थे
प्यार देकर चले गऐ

दिल्लगी कर जिंदगी से दिल लगा के चल
जिंदगी है थोड़ी थोडा मुस्कुरा के चल

रात को आजाद हो जाते हैं जाने किस तरह
सारा दिन रखता हूँ मै तो आंसू बाँध कर

हुए बदनाम मगर फिर भी न सुधर पाए हम
फिर वही शायरी फिर वही इश्क, फिर वही तुम

वो मुझे याद तो करती है मगर कुछ ऐसे
जैसे घर का दरवाजा किसी रात खुला रह जाए

तेरी मोहब्बत को कभी खेल नही समजा
वरना खेल तो इतने खेले है कि कभी हारे नही

कमाल का ताना दिया है आज ज़िन्दगी ने
अगर कोई तेरा है तो तेरे पास क्यूँ नही

सूखे पत्तों की तरह बिखरे थे हम।
किसी ने समेटा भी तो सिर्फ जलाने के लिए।

किस कदर करूँ मुकदमा मैं उसपर उसकी बेवफाई का
मेरा दिल भी निकला वक़ील उसका

इश्क मुहब्बत क्या है मुझे नही मालूम
बस तुम्हारी याद आती है सीधी सी बात है

तेरी तो फितरत थी सबसे मुहब्बत करने की,
हम तो बेवजह खुद को खुशनसीब समझने लग

तमाम उम्र इसी बात का गुरुर रहा मुझे
किसी ने मुझसे कहा था की हम तुम्हारे है

झुठ बोलकर तो मैं भी दरिया पार कर जाता
मगर डूबो दिया मुझे सच बोलने की आदत ने

दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्याधिक आवश्यकता है।

बात तो सिर्फ जज़्बातों की है वरना
मोहब्बत तो सात फेरों के बाद भी नहीं होती