बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं
अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती
बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं
अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती
वो आँखें झुक गयीं मुझे देख कर
यकीनन उसने कभी मुझे चाहा तो ज़रूर होगा
कोई ऐसा आइना बना दे मेरे मालिक
जिसमे चेहरा नही इंसान की औकात दिख जाए
बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं
अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती
सिलसिला वफाओं का एक नया चलाया मैंने
न उसको याद रखा न ही भुलाया मैंने
अक्सर पूछते है लोग किसके लिए लिखते हो
अक्सर कहता है दिल काश कोई होता
बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं
अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती
पार्लर जाके रंग तो गोरा कर लोगी पर क्या करोगी
तुम अपने इस काले दिल का
डूबी हैं उगंलिया अपने ही लहू मे
ये कांच के टुकड़ों पर भरोसे की सजा है
आरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने की
लम्हें तो अपने आप ही मिल जाते हैं
ये बात कैसे गंवारा करेगा दिल मेरा
कि तेरा नाम किसी गैर की जुबान पे हो
मैं जख्म जख्म हूँ जाकर मिलू कीससे ? नमक से तर कपडे यहाँ सब पहेने हुए हैं..
चाहे कुछ भी हो सवालात ना करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात ना करना उनसे
हुस्न वाले जब तोड़ते हैं दिल किसी का, बड़ी सादगी से कहते है मजबूर थे हम..!
मानो तो एक सोच का रिश्ता है हम सबका
ना मानो तो कौन किसी का क्या लगता है