शेर को सवा शेर कही ना कही जरुर मिलता है
और रही बात हमारी तो हम तो बचपन से ही शिकारी है
शेर को सवा शेर कही ना कही जरुर मिलता है
और रही बात हमारी तो हम तो बचपन से ही शिकारी है
जिनकी शायरी मे होती हैँ सिसकियाँ अक्सर
वो शायर नही किसी बेवफा के दीवानेँ होते हैँ
वो दौलत जमाने की देकर भी खरीद नही सकते,
जो मुस्कान गरीब बच्चों के चेहरों पे होती है..||
कैसे गुज़रती है मेरी हर एक शाम तेरे बगैर,
अगर तुम देख लेते तो कभी तनहा ना छोड़ते मुझे..
बहुत महंगा हो गया है ये इश्क़ जनाब आजकल
अब उसे पहली मुलाकात में दिल नही तोहफे चाहिये
मौत के मारों को तो सैकड़ो कन्धे मिल जाएंगे
कौन चलता है यहाँ वक्त के मारों के साथ दिल से
मैं हँसता हूँ तो बस अपने गम छिपाने के लिए
और लोग देख के कहते हैं काश हम भी इसके जैसे होते
एक तुमको ही चाहा था मैंने इस जमाने से लड़कर
और तुमने ही ज़माने से मिलकर मुझे तन्हा कर दिया
तुमने कहा था हर शाम तेरे साथ गुजारेगे,
तुम बदल चुके हो या फिर तेरे शहर में शाम ही नहीं होती?
मैं क्यूँ कुछ सोच कर दिल छोटा करूँ कि वो बेवफा थी,
वो उतनी ही वफ़ा, कर सकी जितनी उसकी औकात थी...
बाज़ार के रंगों से रंगने की मुझे जरुरत नहीं…
किसी की याद आते ही ये चेहरा गुलाबी हो जाता है…
दास्ताँ
आरजू थी, मोहब्बत का पैगाम लिखेंगे ;
तन्हाई मे कैसे गुजरी रात वो दास्ताँ लिखेंगे !
जिस नजाकत से ये लहरे मेरे पैरों को छूती है;
यकीन नही होता इन्होने
कभी कश्तियाँ डूबाई होगी...!!
उठाकर फूल की पत्ती उसने बङी नजाकत से मसल दी
इशारो इशारो मेँ कह दिया की हम दिल का ये हाल करते है
समेट कर ले जाओ अपने झूठे वादों के अधूरे क़िस्से; अगली मोहब्बत में तुम्हें फिर इनकी ज़रूरत पड़ेगी।