तुमसे किसने कह दिया कि मुहब्बत की बाजी हार गए हम?
अभी तो दाँव मे चलने के लिए मेरी जान बाकी है !
तुमसे किसने कह दिया कि मुहब्बत की बाजी हार गए हम?
अभी तो दाँव मे चलने के लिए मेरी जान बाकी है !
एहसान वो किसी का लेते नहीं मेरा भी चुका दिया
जितना भी खाया था नमक मेरे ज़ख़्मों पर लगा दिया
मेरी गरीबी ने उड़ाया है मेरी हर काबिलियत का मज़ाक
तेरी दौलत ने तेरे हर ऐब को हुनर बना रखा है
चलो उसका नहीं तो खुदा का थोड़ा अहसान लेते है
वो मिन्नत से नहीं माना तो मन्नत से मांग लेते है
बेचैन राते बिताकर मैं किश्तें चुका रहा हूँ
उसने एक बार मुस्कुराकर कुछ यूँ कर्ज़दार कर दिया
मेरी तकदीर को बदल देंगे मेरे बुलंद इरादे
मेरी किस्मत नहीं मोहताज मेरे हाँथों की लकीरों की
कभी मंदिर पे बैठते हैं कभी मस्जिद पे
ये मुमकिन है इसलिए क्योंकि परिंदों में नेता नहीं होते
फिर नहीं बसते वो दिल जो
एक बार उजड़ जाते है ,
कब्रें जितनी भी सजा लो पर
कोई ज़िंदा नहीं होता …
मोहब्बत यूँ ही किसी से हुआ नहीं करती....,
अपना वजूद भूलाना पडता है,
किसी को अपना बनाने के लिए...।
|| 🌹ए सुदामा मुझे भी सिखा दें कोई हुनर तेरे जैसा
मुझे भी मिल जायेगा फिर कोई दोस्त कृष्ण जैसा🌹 ||
हम उनसे तो लड़ सकते हैं जो खुले आम दुश्मनी रखते हैं
पर उनका क्या करें जो साथ रहकर वार करते हैं
मोहब्बत का नतीजा दुनिया में हमने बुरा देखा; जिन्हें दावा था वफ़ा का उन्हें भी हमने बेवफा देखा।
जनाजा रोककर वो मेरे से इस अन्दाज़ मे बोले,
गली छोड्ने को कही थी
हमने
तुमने दुनियां छोड दी।
कोई नामुमकिन सी बात मुमकिन करके दिखा
खुद पहचान लेगा जमाना तुझे
तू भीड़ में भी अलग चल कर दिखा
मेरे मरने का एलान हुआ तो,
उसने भी यह कह दिया..
अच्छा हुआ मर गया,बहुत उदास रहता था !!
🌾♦🌾♦💲🌾♦🌾♦