मेरे पास से गुज़र गए मेरा हाल तक ना पूछा
मैं ये कैसे मान जाऊँ वो दूर जा के रोए

डूबी हैं मेरी उंगलियां खुद अपने लहू में; यह काँच के टुकड़ों को उठाने की सजा है।

फिर आज अश्क से आँखों में क्यों हैं आये हुए; गुज़र गया है ज़माना तुझे भुलाये हुए।

मुझसे मोहब्बत पर मशवरा मांगते है लोग
तेरा इश्क तजुर्बा मुझको ऐसा दे गया।।

डूबी हैं मेरी उँगलियाँ खुद अपने लहू में; ये काँच के टुकड़ों को उठाने के सज़ा है।

बहुत तड़पाया है किसी की बेबस यादों ने; ऐ ज़िंदगी खत्म हो जा अब और तड़पा नहीं जाता।

मौसम की तरह बदल देते हैं लोग हमनफस अपना; हमसे तो अपना सितमगर भी बदला नहीं जाता!

ये बिखरे हुए हालात देख के लगता नहीं मेरे
के कितना ढूँढ़ा होगा तुझे जिन्दगी

जब डूब रहा था कोई कोई भी न था साहिल पे
पर भीड़ बडी थी साहिल पर जब डूब गया था कोई

पढ़ तो लिए है मगर अब कैसे फेंक दूँ; खुशबू तुम्हारे हाथों की इन कागज़ों में जो है।

आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है; जब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है।

तुझसे अच्छे तो जख्म हैं मेरे
उतनी ही तकलीफ देते हैं जितनी बर्दास्त कर सकूँ

बस तुम्हें पाने की तमन्ना नही रही
मोहब्बत तो आज भी तुम्हें बेसुमार करते है

वो छोटी छोटी उड़ानों पे गुरुर नहीं करता
जो परिंदा अपने लिये आसमान ढूँढ़ता है

मोहब्बत करने से फुरसत नहीं मिली यारो
वरना हम करके बताते नफरत किसको कहते है