यूँ किस बात का इन्तकाम है तेरा, मेरे दोस्त,
तेरा देख के ना देखने का अंदाज तौबा मेरे सब्र की।
यूँ किस बात का इन्तकाम है तेरा, मेरे दोस्त,
तेरा देख के ना देखने का अंदाज तौबा मेरे सब्र की।
अपना ही समझते हैं तुम्हें दिल-ओ-जाना हम तुम्हें; दुश्मनों को तो कभी दिल में बसाया नहीं जाता।
उनको डर है कि हम उन के लिए जान नही दे सकते
और मुझे खोफ़ है कि वो रोएंगे बहुत मुझे आज़माने के बाद
........."सिर्फ एक ही बात सीखी इन हुस्न वालों से हमने
"हसीन जिस कि जितनी अदा है वो उतना ही बेवफा है !!
वो जो कहते थे मिटा देगे हर याद मेरी दिल से
सुना है फकीरा उन से मेरा नाम तक न लिख कर मिटाया गया
तुमने कहाँ हम याद नहीं आएँगे तुम्हें फिर
बताना ज़रा ये सुबह-सुबह हमारा ज़िक्र क्युँ बोलो
अगर किसी दिन रोना आये तो आ जाना मेरे पास !
हँसने का वादा तो नही करता मगर रोउंगा जरूर तेरे साथ !
झुठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते हैं
तरक्की के बाज़ की उडान में कभी आवाज़ नहीं होती
वो जान गयी थी हमें दर्द में मुस्कराने की आदत हैं,
वो रोज नया जख्म देती थी मेरी ख़ुशी के लिए…
उसकी जफ़ाओं ने मुझे एक तहज़ीब सिखा दी है फ़राज़ ; मैं रोते हुए सो जाता हूँ पर शिकवा नहीं करता।
गर लफ्ज़ों में कर सकते बयान इंतेहा-ए-दर्द ए दिल
लाख तेरा दिल पत्थर का सही
कब का मोम कर देते
तुमसे किसने कह दिया कि मुहब्बत की बाजी हार गए हम?
अभी तो दाँव मे चलने के लिए मेरी जान बाकी है !
शायरियों से बुरा लगे तो बता देना दोस्तों
दर्द बाँटने के लिए लिखता हूँ दर्द देने के लिए नही
ज़रूरी तो नहीं के शायरी वो ही करे जो इश्क में हो
ज़िन्दगी भी कुछ ज़ख्म बेमिसाल दिया करती है
मेरी शायरी कितनी ही अच्छी क्यों ना हो दोस्तों
लिखने का आनंद तो आपके तारीफ़ के बाद ही आता है