तेरे मिलने को... तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं; मगर ये लोग पागल हो गये हैं; बहारें लेके आये थे जहाँ तुम; वो घर सुनसान जंगल हो गये हैं; यहाँ तक बढ़ गये आलाम-ए-हस्ती; कि दिल के हौसले शल हो गये हैं; कहाँ तक ताब लाये नातवाँ दिल; कि सदमे अब मुसलसल हो गये हैं; निगाह-ए-यास को नींद आ रही है; मुसर्दा पुरअश्क बोझल हो गये हैं; उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना; यहाँ जो हादसे कल हो गये हैं; जिन्हें हम देख कर जीते थे नासिर ; वो लोग आँखों से ओझल हो गये है।

​​​दिल में अब यूँ...​ दिल में अब यूँ तेरे भूले हुए ग़म आते है;​​ जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते है;​​​ ​ रक़्स-ए-मय तेज़ करो साज़ की लय तेज़ करो​;​ सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते है;​ ​ और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो​;​​ दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते है;​ ​ इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन​;​​ मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते है​;​​ कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग​;​​ वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते है​।

अभी इस तरफ़ न निगाह कर... अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ; मेरा लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार लूँ; मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ; ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ; अगर आसमाँ की नुमाइशों में मुझे भी इज़्न-ए-क़याम हो; तो मैं मोतियों की दुकान से तेरी बालियाँ तेरे हार लूँ; कई अजनबी तेरी राह के मेरे पास से यूँ गुज़र गये; जिन्हें देख कर ये तड़प हुई तेरा नाम लेके पुकार लूँ।

ज़रा-सी देर में ज़रा-सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा; ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा; न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं; हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा; सफ़ीना हो के हो पत्थर हैं हम अंज़ाम से वाक़िफ़; तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा; समन्दर के सफर में किस्मतें पहलू बदलती हैं; अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा; मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको; किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा।

ज़रा-सी देर में... ज़रा-सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा; ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा; न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं; हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा; सफ़ीना हो के हो पत्थर हैं हम अंज़ाम से वाक़िफ़; तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा; समन्दर के सफर में किस्मतें पहलू बदलती हैं; अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा; मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको; किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा।

कठिन है राहगुज़र... कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो; बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो; तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है; मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो; नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं; बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो; ये एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है; किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो; अभी तो जाग रहे हैं चिराग़ राहों के; अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो; तवाफ़-ए-मन्ज़िल-ए-जानाँ हमें भी करना है; फ़राज़ तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो।

तबीयत इन दिनों बेगा़ना-ए-ग़म होती जाती है; मेरे हिस्से की गोया हर ख़ुशी कम होती जाती है; क़यामत क्या ये अय हुस्न-ए-दो आलम होती जाती है; कि महफ़िल तो वही है दिलकशी कम होती जाती है; वही मैख़ाना-ओ-सहबा वही साग़र वही शीशा; मगर आवाज़-ए-नौशानोश मद्धम होती जाती है; वही है शाहिद-ओ-साक़ी मगर दिल बुझता जाता है; वही है शमः लेकिन रोशनी कम होती जाती है; वही है ज़िन्दगी अपनी जिगर ये हाल है अपना; कि जैसे ज़िन्दगी से ज़िन्दगी कम होती जाती है।

ले चला जान मेरी... ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा; ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा; अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा; सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा; तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है; किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा; ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रखा है; काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा; अपनी आँखों में भी कौँध गई बिजली सी; हम न समझे कि ये आना है कि जाना तेरा; दाग़ को यूँ वो मिटाते हैं ये फ़र्माते हैं; तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा।

ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए; वो फूल क्या हुए वो सितारे कहाँ गए; यारान-ए-बज़्म जुरअत-ए-रिंदाना क्या हुई; उन मस्त अँखड़ियों के इशारे कहाँ गए; एक और दौर का वो तक़ाज़ा किधर गया; उमड़े हुए वो होश के धारे कहाँ गए; दौरान-ए-ज़लज़ला जो पनाह-ए-निगाह थे; लेटे हुए थे पाँव पसारे कहाँ गए; बाँधा था क्या हवा पे वो उम्मीद का तिलिस्म; रंगीनी-ए-नज़र के ग़ुबारे कहाँ गए; बे-ताब तेरे दर्द से थे चाराग़र हफ़ीज ; क्या जानिए वो दर्द के मारे कहाँ गए।

​​हो गई है पीर पर्वत-सी​... ​​​​हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए​;इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए​;​आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी​;​शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए​;​​​हर सड़क पर हर गली में हर नगर हर गाँव में​​;हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए​;​सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं​;​सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए​;​​​मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही​;​हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए​। ​

तुम न आये एक दिन... तुम न आये एक दिन का वादा कर दो दिन तलक; हम पड़े तड़पा किये दो-दो पहर दो दिन तलक; दर्द-ए-दिल अपना सुनाता हूँ कभी जो एक दिन; रहता है उस नाज़नीं को दर्द-ए-सर दो दिन तलक; देखते हैं ख़्वाब में जिस दिन किस की चश्म-ए-मस्त; रहते हैं हम दो जहाँ से बेख़बर दो दिन तलक; गर यक़ीं हो ये हमें आयेगा तू दो दिन के बाद; तो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलक; क्या सबब क्या वास्ता क्या काम था बतलाइये; घर से जो निकले न अपने तुम ज़फ़र दो दिन तलक।

मुझ से पहली सी मोहब्बत... मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग; मैंने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात; तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है; तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात; तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है; तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है; तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये; यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये; और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा; राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा।

ज़रा से झौंके को... ज़रा से झौंके को तूफ़ान कहते हो; ज़रा सा छप्पर है आसमान कहते हो; उठो पहचानों मृग-मरीचिका को; मुट्ठी भर रेत को रेगिस्तान कहते हो; अब बदलनी पड़ेगी परिभाषाएँ; सोचो तुम किसको इंसान कहते हो; नैनों का जल अभी सूखा नहीं; पहचानों जिन्हें महान कहते हो; सूचियां सब सार्वजानिक तो करो; जानते हो जिनको भगवान कहते हो; जमानें को मालूम है बदमाशियां; कैसे अपने को नादान कहते हो; कभी झांके हो अपने भीतर; फिर क्यों औरों को शैतान कहते हो।

लगता नहीं है जी मेरा... लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में; किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में; कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें; इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में; उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन; दो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार में; काँटों को मत निकाल चमन से ओ बागबाँ; ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में; कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिये; दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में। अनुवाद: आलम-ए-नापायेदार = अस्थायी दुनिया सय्याद = शिकारी

अब के हम बिछड़े... अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें; जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें; ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती; ये खजाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलें; तू खुदा है न मेरा इश्क़ फरिश्तों जैसा; दोनों इन्साँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें ; आज हम दार पे खैंचे गए जिन बातों पर; क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें; अब न वो मैं हूँ न तू है न वो माजी है फ़राज़ ; जैसे दो शख्स तमन्ना के सराबों में मिलें।