गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो का वरना
लोगो को उनकी औकात दिखाने का हुनर आज भी रखता हूँ
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो का वरना
लोगो को उनकी औकात दिखाने का हुनर आज भी रखता हूँ
कश्ती मोहब्बत की ले के निकले थे तूफ़ानो में
हमारे यार ने ही हमारी कश्ती को डूबो दिया ..!
er kasz
सिर्फ एक बार आओ हमारे दिल मेँ अपनी मुहब्बत देखने
फिर लौटने का ईरादा हम तुम पर छोड़ देँगे.!! —
आज जिस्म मे जान है तो देखते नही हैं लोग...
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जब "रूह" निकल जाएगी तो कफन हटा-हटा कर देखेंगे लोग.......
तेरे गुरूर को देखकर तेरी तमन्ना ही छोड़ दी हमने
जरा हम भी तो देखे कौन चाहता है तुम्हे हमारी तरह
तेरी बेवफाई पर इतना ही कहूँगा हमसफर
मैं खुद को इस काबिल बनाऊंगा की तेरी आँखे मेरे दीदार को तरसेगी
चली जाने दो उसे किसी ओर कि बाहों मे
इतनी चाहत के बाद जो मेरी ना हुई
वो किसी ओर कि क्या होगी दोस्तों
सिर्फ एक बार आओ हमारे दिल की सल्तनत में
अपना मुकाम देखने..
फिर लौटने का ईरादा हम तुम पर छोड़ देँगे.!!
कल का दिन किसने देखा है आज का दिन हम खोएँ क्यों
जिन घड़ियों में हँस सकते हैं उन घड़ियों में रोएँ क्यों
महफ़िल में इस कदर पीने का दौर था
हमको पिलाने के लिए सबका जोर था
पी गए हम इतनी यारो के कहने पर
न अपना गौर था न ज़माने का गौर था
तेरी आवाज़ तेरे रूप की पहचान है
तेरे दिल की धड़कन में दिल की जान है
ना सुनूं जिस दिन तेरी बातें
लगता है उस रोज़ ये जिस्म बेजान है
मैं आज तक नहीं समझ पाया कि
लोगों को "ईश्वर" से शिकायत क्यों रहती हैं
उन्होने हमारे पेट भरने की जिम्मेदारी ली हैं भाई
पेटियां भरने की नहीं.
हसरत है सिर्फ़ तुम्हे पाने की,
और कोई ख्वाईश नही इस दीवाने की,
शिकवा मुझे तुमसे नही खुदा से है,
क्या ज़रूरत थी तुम्हे इतना खूबसरत बनाने की ..!
er kasz
तेरे बिना टूटकर बिखर जाएँगे,
तुम मिल गये तो गुलशन की तरह खिल जाएँगे,
तुम ना मिले तो जीते जी मार जाएँगे,
तुम्हे पा लिया तो मारकर भी जी जाएँगे ..!
er kasz
वो रात दर्द और सितम की रात होगी
जिस रात रुखसत उनकी बारात होगी
उठ जाता हु मैं ये सोचकर नींद से अक्सर
के एक गैर की बाहों में मेरी सारी कायनात होगी