जब भी मौका मिलेगा ना, तो ,, जिस्म पे नही सीधे घाव पर वार करुंगा..... ((मा कसम))
जब भी मौका मिलेगा ना, तो ,, जिस्म पे नही सीधे घाव पर वार करुंगा..... ((मा कसम))
दर्द नसीब से मिलता है मेरी जान औक़ात
कहाँ है तेरी मुझे तड़पाने की
कोशिश करते करते कामयाब हो जाउँगा
एक दिन नालायक से नायाब हो जाउँगा
पतंग सी है जिंदगी कहा तक जायेगी...
रात हो या उम्र एक न एक दिन कट जायेगी..!!
जो ना समझ है वो ही मोहब्बत करता है
वो मोहब्बत ही क्या जो समझ में आ जाए
छोड़ दो किसी से वफा की आस ऐ दोस्त
जो रूला सकता हैं वो भुला भी सकता हैं
उनकी नादानी की हद ना पूछिए जनाब
हमें खोकर हमारे जैसा ढूंढ रहे हैं वो
हुस्न वाले जब तोड़ते हैं दिल किसी का, बड़ी सादगी से कहते है मजबूर थे हम..!
पहली मुलाकात थी हम दोनों ही थे बेबस; वो जुल्फें न संभाल पाए और हम खुद को।
ना छोड़ना मेरा साथ ज़िन्दगी में कभी
शायद मैं ज़िंदा हूँ तेरे साथ की वजह से
ख़ता ये नहीं कि उसने भूला क्यों दिया
सवाल ये है कि वो मुझे अब याद क्यों है
वो मुझे याद तो करती है मगर कुछ ऐसे
जैसे घर का दरवाजा किसी रात खुला रह जाए
इतना मगरूर मत बन मुझे वक्त कहते हैं
मैंने कई बादशाहो को दरबान बनाया हैं
तू मिली नही मझको ये मुकद्दर की बात है
बड़ा सुकून पाता था तम्हे अपना सोचकर
कमाल का ताना दिया है आज ज़िन्दगी ने
अगर कोई तेरा है तो तेरे पास क्यूँ नही