कौन करता है मुद्दतों तक इन्तजार किसी का दोस्तो
लोग कपड़ो की तरह आजकल मोहब्बत बदलते हैं

ये लफ़्ज़ों की शरारत है ज़रा संभाल कर लिखना तुम; मोहब्बत लफ्ज़ है लेकिन ये अक्सर हो भी जाती है।

हज़ारो मैं मुझे सिर्फ़ एक वो शख्स चाहिये
जो मेरी ग़ैर मौजूदगी मैं मेरी बुराई ना सुन सके

न हम खफा है तुम से न कोई फरयाद करते है
तुम कॉल करो या न करो ये जान लो हम तुम्हे हर पल याद करते

हमें पता था तेरी फितरत में है दगावाजी
हमने तो मौहब्बत ईसलिए कि थी शायद तेरी सोच बदल जाये

मैं क्यों कहूँ उससे की मुझसे बात करो
क्या उसे नहीं मालूम की उसके बिना मेरा दिल नहीं लगता

हमें पता था तेरी फितरत में है दगावाजी
हमने तो मौहब्बत ईसलिए कि थी शायद तेरी सोच बदल जाये

हमारी अदा तो हमेशा मुकुरने की थी ओये बेवफा
ज़िन्दगी वीरान हो गयी किसी से दिल लगाने के बाद

तुझे ही फुरसत ना थी किसी अफ़साने को पढ़ने की
में तो बिकता रहा तेरे शहर में किताबों की तरह

यूँ खाली पलकें झुका देने से नींद नहीं आती
सोते वही लोग है जिनके पास किसी की याद नहीं होती

गिले-सिकवे में उलझ कर रह गयी मौहब्बत अपनी
समझ में नही आता मौहब्बत चल रही थी या कोई मुकदमा

उसकी मुहब्बत का सिलसिला भी क्या अजीब है,
अपना भी नहीं बनाती और किसी का होने भी नहीं देती....!!

कश्ती मोहब्बत की ले के निकले थे तूफ़ानो में
हमारे यार ने ही हमारी कश्ती को डूबो दिया ..!
er kasz

अपने हसीन होठो को किसी परदे में छुपा लिया करो
हम गुस्ताख़ लोग हे नजरो से चुम लिया करते हैं

कुछ रोज़ से यारो ये दिल नही लगता चैन नही मिलता
कि दर्द की आदत डालके उसने सितम करना छोड़ दिया