कुछ अलग था कहने का अंदाज़ उनका; कि सुना भी कुछ नहीं और कहा भी कुछ नहीं; कुछ इस तरह बिखरे उनके प्यार में हम; कि टूटा भी कुछ नहीं और बचा भी कुछ नहीं।

हादसे इंसान के संग मसखरी करने लगे; लफ्ज कागज पर उतर जादूगरी करने लगे; कामयाबी जिसने पाई उनके घर बस गए; जिनके दिल टूटे वो आशिक शायरी करने लगे।

मत पूछना ख़फ़ा होने का सबब मुझसे; कैसे-कैसे खेले हैं किस्मत ने खेल मुझसे; अब कैसे छिपाऊं अश्क इन आँखों में; क्या बताऊँ अब क्या छूट गया है मुझसे।

प्यार तो ज़िन्दगी को सजाने के लिए है; पर ज़िन्दगी बस दर्द बहाने के लिए है; मेरे अंदर की उदासी काश कोई पढ़ ले; ये हँसता हुआ चेहरा तो ज़माने के लिए है।

जिए हुए लम्हों को ज़िन्दगी कहते हैं
जो दिल को सुकून दे उसे ख़ुशी कहते हैं
जिसके होने की ख़ुशी से ज़िन्दगी मिले
ऐसे रिश्ते को दोस्ती कहते हैं

कैसे बयान करे अब आलम दिल की बेबसी का; वो क्या समझे दर्द इन आंखों की नमी का; चाहने वाले उनके इतने हो गए हैं कि; अब एहसास ही नहीं उन्हें हमारी कमी का।

कैसे बयान करें आलम दिल की बेबसी का; वो क्या समझे दर्द आंखों की इस नमी का; उनके चाहने वाले इतने हो गए हैं अब कि; उन्हे अब एहसास ही नहीं हमारी कमी का।

दिल की ख्वाहिश को नाम क्या दूं
प्यार का उसे पैगाम क्या दूं
इस दिल में दर्द नहीं उसकी यादें हैं
अब यादें ही दर्द दे तो उसे क्या इल्ज़ाम दूं

दिल के दर्द छुपाना बड़ा मुश्किल है; टूट कर फिर मुस्कुराना बड़ा मुश्किल है; किसी अपने के साथ दूर तक जाओ फिर देखो; अकेले लौट कर आना कितना मुश्किल है।

हर वक़्त तेरी यादें तडपाती हैं मुझे; आखिर इतना क्यों ये सताती है मुझे; इश्क तो किया था तूने भी बड़े शौंक से; अब क्यों नहीं यह एहसास दिलाती है तुझे।

कितना दर्द है दिल में दिखाया नहीं जाता; गंभीर है किस्सा सुनाया नहीं जाता; एक बार जी भर के देख लो इस चहेरे को; क्योंकि बार-बार कफ़न उठाया नहीं जाता।

आज अरसे बाद जब सुनी उसकी आवाज़; तो लगा जैसे है वो मेरे दिल के ही पास; जब आया होश टी तो नम हो गयी ये आँखें; फिर एहसास हुआ कि कभी न पूरी होने वाली है ये आस।

मैं आज तक नहीं समझ पाया कि
लोगों को "ईश्वर" से शिकायत क्यों रहती हैं
उन्होने हमारे पेट भरने की जिम्मेदारी ली हैं भाई
पेटियां भरने की नहीं.

ए खुदा आज ये फ़ैसला करदे उसे मेरा या मुझे उसका करदे
बहुत दुख सहे हे मैने कोई ख़ुसी अब तो मूक़दर करदे
बहुत मुश्किल लगता है उससे दूर रहना जुदाई

वो नाराज़ हैं हमसे कि हम कुछ लिखते नहीं; कहाँ से लाएं लफ्ज़ जब हमको मिलते नहीं; दर्द की ज़ुबान होती तो बता देते शायद; वो ज़ख्म कैसे दिखाए जो दिखते नहीं।