सुबह रो-रो के... सुबह रो-रो के शाम होती है;... शब तड़प कर तमाम होती है; सामने चश्म-ए-मस्त साक़ी के; किस को परवाह-ए-जाम होती है; कोई ग़ुंचा खिला के बुल-बुल को; बेकली ज़र-ए-दाम होती है; हम जो कहते हैं कुछ इशारों से; ये ख़ता ला-कलाम होती है।

रस्म-ए-उल्फत... रस्म-ए-उल्फत सिखा गया कोई; दिल की दुनिया पर छा गया कोई; ये क़यामत किसी तरह ना बुझे; आग ऐसी लगा गया कोई; दिल की दुनियाँ उजाड़ सी क्यों है; क्या यहाँ से चला गया कोई; वक़्त-ए-रुख्सत गले लगा कर दाग ; हँसते-हँसते रुला गया कोई।

तुम ये कैसे... तुम ये कैसे जुदा हो गये; हर तरफ़ हर जगह हो गये; अपना चेहरा न बदला गया; आईने से ख़फ़ा हो गये; जाने वाले गये भी कहाँ; चाँद सूरज घटा हो गये; बेवफ़ा तो न वो थे न हम; यूँ हुआ बस जुदा हो गये; आदमी बनना आसाँ न था; शेख़ जी आप हो गये।

बहार के मौसम में... बहार के मौसम में उजड़े रास्ते; चला करोगे तो रो पड़ोगे; कि चाँदनी रातों में अब किसी से; मिला करोगे तो रो पड़ोगे; बरसती बारिश में याद रखना; तुम्हें सताएंगी मेरी आँखें; किसी वली की मज़ार पर जब; दुआ करोगे तो रो पड़ोगे।

सोच में उनके... सोच में उनके ईमान हो; तब तो कोई समाधान हो; कोई ज़रिया दिखाई तो दे; कोई मुश्किल तो आसान हो; हद है तेरे लिए ज़िंदगी; कोई कितना परेशान हो; और कुछ हो ना हो आदमी; आदमी एक इंसान हो; उसको फिर और क्या चाहिए; दिल में जीने का अरमान हो!

मुँह तका ही करे... मुँह तका ही करे है जिस-तिस का; हैरती है ये आईना किस का; शाम से कुछ बुझा सा रहता है; दिल हुआ है चराग़ मुफ़लिस का; फ़ैज़ अय अब्र चश्म-ए-तर से उठा; आज दामन वसीअ है इसका; ताब किसको जो हाल-ए-मीर सुने; हाल ही और कुछ है मजलिस का।

थे कल जो अपने... थे कल जो अपने घर में वो मेहमाँ कहाँ हैं; जो खो गये हैं या रब वो औसाँ कहाँ हैं; आँखों में रोते रोते नम भी नहीं अब तो; थे मौजज़न जो पहले वो तूफ़ाँ कहाँ हैं; कुछ और ढब अब तो हमें लोग देखते हैं; पहले जो ऐ ज़फ़र थे वो इन्साँ कहाँ है।

मैं उनकी आँखो की... मैं उनकी आँखो की छलकी शराब पीता हूँ; गरीब हो के भी मँहगी शराब पीता हूँ; मुझे नशे में वो बहकने नहीं देता; उसे पता है मैं कितनी शराब पीता हूँ; पुराने चाहने वालों की याद सताती है मुझे; इसी लिए मैँ पुरानी शराब पीता हूँ।

उसके तुरंत बाद ही.... उसके तुरंत बाद ही बदली है ज़िन्दगी; जीवन में चंद फैसले इतने अहम् रहे; अनुयायियों ने धर्म की सूरत बिगाड़ दी; हिंसा में सबसे आगे अहिंसक धरम रहे; वो अपने बल पे दौड़ को जीते नहीं कभी; जो लोग जोड़ तोड़ में सबसे प्रथम रहे।

आँख से आँख... आँख से आँख मिलाता है कोई; दिल को खींचे लिए जाता है कोई; वा-ए-हैरत के भरी महफ़िल में; मुझ को तन्हा नज़र आता है कोई; चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल; हौंसला किस का बढ़ाता है कोई; सब करिश्मात-ए-तसव्वुर है शकील ; वरना आता है न जाता है कोई।

उसके पहलू से... उसके पहलू से लग के चलते हैं; हम कहीं टालने से टलते हैं; मै उसी तरह तो बहलता हूँ; और सब जिस तरह बहलतें हैं; वो है जान अब हर एक महफ़िल की; हम भी अब घर से कम निकलते हैं; क्या तकल्लुफ्फ़ करें ये कहने में; जो भी खुश है हम उससे जलते हैं।

मुमकिन है कि तु... मुमकिन है कि तु जिसको समझता है बहाराँ; औरों की निगाहों में वो मौसम हो ख़िज़ाँ का; है सिल-सिला एहवाल का हर लहजा दगरगूँ; अए सालेक-रह फ़िक्र न कर सूदो-ज़याँ का; शायद के ज़मीँ है वो किसी और जहाँ की; तु जिसको समझता है फ़लक अपने जहाँ का।

इस शहर की भीड़ में... इस शहर की भीड़ में चेहरे सारे अजनबी; रहनुमा है हर कोई पर रास्ता कोई नहीं; अपनी-अपनी किस्मतों के सभी मारे यहाँ; एक-दूजे से किसी का वास्ता कोई नहीं; बस चला जाता यूँ ही ज़िन्दगी का कारवाँ; यादों के टुकड़े हैं बस दास्ताँ कोई नहीं।

कोई उस शहर में... कोई उस शहर में कब था उसका; उसे यह ​​​ज़ो म कि रब था उसका; उसकी रग-रग में उतरती रही आग; उसके अंदर ही ग़ज़ब था उसका; वही सिलसिला-ए-तार-ए-नफ़स; वही जीने का सबब था उसका; सिद्क़-जदा था वो शहज़ादा कमाल; बस यही नाम-ओ-नसब था उसका। Translation: ज़ो म= गर्व सिद्क़= सच

जो मेरे लिए... जो मेरे लिए ही सजा करे; जो मेरे लिए ही बना करे; मैं जो रूट जाऊँ मनाये वो; मैं उदास हूँ तो हंसाए वो; सदा चुपके-चुपके दबे क़दम; मेरे साथ ही बस चला करे; कभी उस से मैं जो दूर हूँ; मेरी वापसी की दुआ करे; कोई अपना ऐसा हुआ करे; कोई अपना ऐसा हुआ करे।