जो भी दुख याद न था... जो भी दुख याद न था याद आया; आज क्या जानिए क्या याद आया; याद आया था बिछड़ना तेरा; फिर नहीं याद कि क्या याद आया; हाथ उठाए था कि दिल बैठ गया; जाने क्या वक़्त-ए-दुआ याद आया; जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल; इक इक नक़्श तेरा याद आया; ये मोहब्बत भी है क्या रोग फ़राज़ ; जिसको भूले वो सदा याद आया।

हर तरफ हर जगह... हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी; फिर भी तन्हाईयों का शिकार आदमी; सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ; अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी; रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ; हर नए दिन नया इतज़ार आदमी; हर तरफ भागते दौड़ते का शिकार आदमी; हर तरफ आदमी का शिकार आदमी; ज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र; आखिरी सांस तक बेक़रार आदमी।

तेरा ख़याल दिल से... तेरा ख़याल दिल से मिटाया नहीं अभी; बेदर्द मैं ने तुझ को भुलाया नहीं अभी; कल तूने मुस्कुरा के जलाया था ख़ुद जिसे; सीने का वो चराग़ बुझाया नहीं अभी; गदर्न को आज भी तेरे बाहों की याद है; चौखट से तेरी सर को उठाया नहीं अभी; बेहोश होके जल्द तुझे होश आ गया; मैं बदनसीब होश में आया नहीं अभी।

दिल तड़पता है दिल तड़पता है इक ज़माने से; आ भी जाओ किसी बहाने से; दिल... बन गये दोस्त भी मेरे दुश्मन; इक तुम्हारे क़रीब आने से; दिल... जब कि अपना तुम्हे बना ही लिया; कौन डरता है फिर ज़माने से; दिल... तुम भी दुनिया से दुश्मनी ले लो; दोनों मिल जाएं इस बहाने से; दिल... चाहे सारे जहान मिट जाएं; इश्क मिटता नहीं मिटाने से; दिल...

खोलिए आँख तो... खोलिए आँख तो मंज़र है नया और बहुत; तू भी क्या कुछ है मगर तेरे सिवा और बहुत; जो खता की है जज़ा खूब ही पायी उसकी; जो अभी की ही नहीं उसकी सज़ा और बहुत; खूब दीवार दिखाई है ये मज़बूरी की; यही काफी है बहाने न बना और बहुत; सर सलामत है तो सज़दा भी कहीं कर लूँगा; ज़ुस्तज़ु चाहिए बन्दों को खुदा और बहुत।

तेरे ही क़दमों में तेरे ही क़दमों में मरना भी अपना जीना भी; कि तेरा प्यार है दरिया भी और सफ़ीना भी; मेरी नज़र में सभी आदमी बराबर हैं; मेरे लिए जो है काशी वही मदीना भी; तेरी निगाह को इसकी ख़बर नहीं शायद; कि टूट जाता है दिल-सा कोई नगीना भी; बस एक दर्द की मंज़िल है और एक मैं हूँ; कहूँ कि तूर ! भला क्या है मेरा जीना भी।

दिल-ए-नादाँ तुझे... दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है; आख़िर इस दर्द की दवा क्या है; हमकों उनसे वफ़ा की है उम्मीद; जो नहीं जानते वफ़ा क्या है;; हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार; या इलाही ये माज़रा क्या है; जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद; फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है; जान तुम पर निसार करता हूँ; मैं नहीं जानता दुआ क्या है।

इस से पहले... इस से पहले के बे-वफ़ा हो जाएं; क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएं; तु भी हीरे से बन जाए पत्थर; हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएं; इश्क़ भी खेल है नसीबों का; ख़ाक हो जाएं कीमिया हो जाएं; अबके गर तु मिले तो हम तुझसे; ऐसे लिपटे कि तेरी क़बा हो जाएं; बंदगी हमने छोड़ दी है फ़राज़ ; क्या करें लोग जब खुदा हो जाएं।

ऐ सबा लौट के... ऐ सबा लौट के किस शहर से तू आती है; तेरी हर लहर से बारूद की बू आती है; खून कहाँ बहता है इंसान का पानी की तरह; जिस से तू रोज़ यहाँ करके वजू आती है; धज्जियाँ तूने नकाबों की गिनी तो होंगी; यूँ ही लौट आती है या कर के रफ़ू आती है; अपने सीने में चुरा लाई है किस की आहें; मल के रुखसार पे किस किस का लहू आती है।

आपको देख कर... आपको देख कर देखता रह गया; क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया; आते-आते मेरा नाम-सा रह गया; उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया; वो मेरे सामने ही गया और मैं; रास्ते की तरह देखता रह गया; झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये; और मैं था कि सच बोलता रह गया; आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे; ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया।

तुमने यह फूल... तुमने यह फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है; एक दीया है जो अंधेरे में जला रखा है; जीत ले जाये कोई मुझे नसीबों वाला; ज़िंदगी ने मुझे दाव् पे लगा रखा है; जाने कब आया कोई दिल में झांकने वाला; इस लिए मैने गिरेबान को खुला रखा है; इम्तिहान और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे; मैने धड़कन को भी सीने में छिपा रखा है।

झूठा निकला... झूठा निकला क़रार तेरा; अब किसको है ऐतबार तेरा; दिल में सौ लाख चुटकियाँ लीं; देखा बस हम ने प्यार तेरा; दम नाक में आ रहा था अपने; था रात ये इंतज़ार तेरा; कर ज़बर जहाँ तलक़ तू चाहे; मेरा क्या इख्तियार तेरा; लिपटूँ हूँ गले से आप अपने; समझूँ कि है किनार तेरा; इंशा से मत रूठ खफा हो; है बंदा जानिसार तेरा।

झूठा निकला... झूठा निकला क़रार तेरा; अब किसको है ऐतबार तेरा; दिल में सौ लाख चुटकियाँ लीं; देखा बस हम ने प्यार तेरा; दम नाक में आ रहा था अपने; था रात ये इंतज़ार तेरा; कर ज़बर जहाँ तलक़ तू चाहे; मेरा क्या इख्तियार तेरा; लिपटूँ हूँ गले से आप अपने; समझूँ कि है किनार तेरा; इंशा से मत रूठ खफा हो; है बंदा जानिसार तेरा।

पहले सौ बार... पहले सौ बार इधर और उधर देखा है; तब कहीं डर के तुम्हें एक नज़र देखा है; हम पे हँसती है जो दुनियाँ उसे देखा ही नहीं; हम ने उस शोख को अए दीदा-ए-तर देखा है; आज इस एक नज़र पर मुझे मर जाने दो; उस ने लोगों बड़ी मुश्किल से इधर देखा है; क्या ग़लत है जो मैं दीवाना हुआ सच कहना; मेरे महबूब को तुम ने भी अगर देखा है।

दिल गया... दिल गया रौनक-ए-हयात गई; ग़म गया सारी कायनात गई; दिल धड़कते ही फिर गई वो नज़र; लब तक आई न थी कि बात गई; उनके बहलाए भी न बहला दिल; गएगां सइये-इल्तफ़ात गई; हाय सरशरायां जवानी की; आँख झपकी ही थी के रात गई; नहीं मिलता मिज़ाज-ए-दिल हमसे; ग़ालिबन दूर तक ये बात गई; क़ैद-ए-हस्ती से कब निजात जिगर ; मौत आई अगर हयात गई।