अपने चेहरे से... अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे; तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे; घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है; पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे; क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है; हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे; कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा; एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे।

जिस दिन से जुदा... जिस दिन से जुदा वो हम से हुए; इस दिल ने धड़कना छोड़ दिया; था चाँद का मुँह भी उतरा हुआ; तारों ने चमकना छोड़ दिया; जब साथ वो हमारे रहते थे; बे रुत भी बहार आ जाती थी; आज बहारें आए तो क्या; फूलों ने महकना छोड़ दिया; अब याद भी आए तो भी क्या; आँखों ने बरसना छोड़ दिया; जिस दिन से जुदा वो हम से हुए; इस दिल ने धड़कना छोड़ दिया।

अपने चेहरे से जो... अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे; तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे; घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है; पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे; क़हक़हा आँख का बर्ताव बदल देता है; हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे; कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा; एक क़तरे को समंदर नज़र आयें कैसे।

आता है याद मुझको... आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना; वो बाग़ की बहारें वो सब का चह-चहाना; आज़ादियाँ कहाँ वो अब अपने घोसले की; अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना; लगती हो चोट दिल पर आता है याद जिस दम; शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना; वो प्यारी-प्यारी सूरत वो कामिनी-सी मूरत; आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना।

क्या भला मुझ को... क्या भला मुझ को परखने का नतीजा निकला; ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला; तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने; तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला; जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने; बू उड़ी धूप से तसवीर से साया निकला; तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर; डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला।

झूठा निकला क़रार तेरा... झूठा निकला क़रार तेरा; अब किसको है ऐतबार तेरा; दिल में सौ लाख चुटकियाँ लीं; देखा बस हम ने प्यार तेरा; दम नाक में आ रहा था अपने; था रात से इंतज़ार तेरा; कर ज़बर जहाँ तलक़ तू चाहे; मेरा क्या इख्तियार तेरा; लिपटूँ हूँ गले से आप अपने; समझूँ कि है किनार तेरा; इंशा से मत रूठ खफा हो; है बंदा जानिसार तेरा।

आए हैं मीर मुँह को बनाए... आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज; शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज; जीने में इख्तियार नहीं वरना हमनशीं; हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज; साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख; टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज; था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये मीर ; पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज।

रात के टुकड़ों पे... रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे; शमा से कहना कि जलना छोड़ दे; मुश्किलें तो हर सफ़र का हुस्न हैं; कैसे कोई राह चलना छोड़ दे; तुझसे उम्मीदे - वफ़ा बेकार है; कैसे इक मौसम बदलना छोड़ दे; मैं तो ये हिम्मत दिखा पाया नहीं; तू ही मेरे साथ चलना छोड़ दे; कुछ तो कर आदाबे - महफ़िल का लिहाज़; यार ये पहलू बदलना छोड़ दे।

इस अहद में इलाही... इस अहद में इलाही मोहब्बत को क्या हुआ; छोड़ा वफ़ा को उन्ने मुरव्वत को क्या हुआ; उम्मीदवार वादा-ए-दीदार मर चले; आते ही आते यारों क़यामत को क्या हुआ; बख्शिश ने मुझ को अब्र-ए-करम की किया ख़िजल; ए चश्म-ए-जोश अश्क-ए-नदामत को क्या हुआ; जाता है यार तेग़ बकफ़ ग़ैर की तरफ़; ए कुश्ता-ए-सितम तेरी ग़ैरत को क्या हुआ।

रोज़ तारों की नुमाइश में... रोज़ तारों की नुमाइश में ख़लल पड़ता है; चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है; एक दीवाना मुसाफ़िर है मेरी आँखों में; वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है; रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते है; रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है; उसकी याद आई है साँसों ज़रा आहिस्ता चलो; धडकनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है।

कितनी पी कैसे कटी रात... कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं; रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं; मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ; थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं; आँसुओं और शराबों में गुजारी है हयात; मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं; जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा; बिखरे-बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं।

तुझे कौन जानता था मेरी दोस्ती से पहले; तेरा हुस्न कुछ नहीं था मेरी शायरी से पहले; इधर आ रक़ीब मेरे मैं तुझे गले लगा लूँ; मेरा इश्क़ बे-मज़ा था तेरी दुश्मनी से पहले; कई इंक़लाब आए कई ख़ुश-ख़िराब गुज़रे; न उठी मगर क़यामत तेरी कम-सिनी से पहले; मेरी सुबह के सितारे तुझे ढूँढती हैं आँखें; कहीं रात डस न जाए तेरी रौशनी से पहले।

तुम्हारी मस्त नज़र... तुम्हारी मस्त नज़र अगर इधर नहीं होती; नशे में चूर फ़िज़ा इस कदर नहीं होती; तुम्हीं को देखने की दिल में आरजूए हैं; तुम्हारे आगे ही और ऊंची नज़र नही होती; ख़फ़ा न होना अगर बढ़ के थाम लूं दामन; ये दिल फ़रेब ख़ता जान कर नहीं होती; तुम्हारे आने तलक हम को होश रहता है; फिर उसके बाद हमें कुछ ख़बर नहीं होती।

ज़िंदगी सभी को मिली... ज़िंदगी सभी को मिली हो ये जरूरी तो नहीं; हर किसी की चाहत पूरी हो ये जरुरी तो नहीं; ज़िंदगी सभी को मिली हो... आग गुलशन में बहारें भी लगा सकती है; सिर्फ बिजली ही गिरी हो ये ज़रूरी तो नहीं; ज़िंदगी सभी को मिली हो... नींद तो दर्द के बिस्तर पर भी आ सकती है; तेरी आगोश में ही सर हो ये ज़रूरी तो नहीं; ज़िंदगी सभी को मिली हो...

जागती रात अकेली-सी लगे; ज़िंदगी एक पहेली-सी लगे; रुप का रंग-महल ये दुनिया; एक दिन सूनी हवेली-सी लगे; हम-कलामी तेरी ख़ुश आए उसे; शायरी तेरी सहेली-सी लगे; मेरी इक उम्र की साथी ये ग़ज़ल; मुझ को हर रात नवेली-सी लगे; रातरानी सी वो महके ख़ामोशी; मुस्कुरादे तो चमेली-सी लगे; फ़न की महकी हुई मेंहदी से रची; ये बयाज़ उस की हथेली-सी लगे।