वो खफा है तो कोई बात नहीं; इश्क मोहताज-ए-इल्त्फाक नहीं; दिल बुझा हो अगर तो दिन भी है रात नहीं; दिन हो रोशन तो रात रात नहीं; दिल-ए-साकी मैं तोड़ू-ए-वाइल; जा मुझे ख्वाइश-ए-नजात नहीं; ऐसी भूली है कायनात मुझे; जैसे मैं जिस्ब-ए-कायनात नहीं; पीर की बस्ती जा रही है मगर; सबको ये वहम है कि रात नहीं; मेरे लायक नहीं हयात ख़ुमार ; और मैं लायक-ए-हयात नहीं।

अगर यूँ ही ये दिल... अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा; तो इक दिन मेरा जी ही जाता रहेगा; मैं जाता हूँ दिल को तेरे पास छोड़े; मेरी याद तुझको दिलाता रहेगा; गली से तेरी दिल को ले तो चला हूँ; मैं पहुँचूँगा जब तक ये आता रहेगा; क़फ़स में कोई तुम से ऐ हम-सफ़ीरों; ख़बर कल की हमको सुनाता रहेगा; ख़फ़ा हो कि ऐ दर्द मर तो चला तू; कहाँ तक ग़म अपना छुपाता रहेगा।

तेरी हर बात​...​तेरी हर बात ​मोहब्बत में गवारा करके​;​दिल के बाज़ार में बैठे है खसारा करके​;​मुन्तजिर हूँ के सितारों की जरा आँख लगे​;​चाँद को छत पर बुला लूँगा इशारा करके​;​आसमानों की तरफ फैंक दिया है मैने​;​चंद मिटटी के चरागों को सितारा करके​;​मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी​;​​​तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।

अगर जो दिल की... अगर जो दिल की सुनो तो हार जाओगे; हम जैसा प्यार फिर कहाँ से पाओगे; जान देने की बात तो हर कोई करता है; जिंदगी बनाने वाला कहाँ से लाओगे; जो एक नज़र देखोगे हमें; हर तरफ बस हमें ही पाओगे; यकीं अपनी चाहत का इतना हैं मुझे; मेरी आँखों में झांकोगे और लौट आओगे; मेरी यादों के समुंदर में जो डूब गये तुम; कहीं जाना भी चाहोगे तो जा नहीं पाओगे।

जागती रात अकेली... जागती रात अकेली-सी लगे; ज़िंदगी एक पहेली-सी लगे; रुप का रंग-महल ये दुनिया; एक दिन सूनी हवेली-सी लगे; हम-कलामी तेरी ख़ुश आए उसे; शायरी तेरी सहेली-सी लगे; मेरी इक उम्र की साथी ये ग़ज़ल; मुझ को हर रात नवेली-सी लगे; रातरानी सी वो महके ख़ामोशी; मुस्कुरादे तो चमेली-सी लगे; फ़न की महकी हुई मेंहदी से रची; ये बयाज़ उस की हथेली-सी लगे।

जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा; बन के हर ज़र्रा आफ़्ताब उठा; डूबी जाती है ज़ब्त की कश्ती; दिल में तूफ़ान-ए-इजि़्तराब उठा; मरने वाले फ़ना भी पर्दा है; उठ सके गर तो ये हिजाब उठा; शाहिद-ए-मय की ख़ल्वतों में पहुँच; पर्दा-ए-नश्शा-ए-शराब उठा; हम तो आँखों का नूर खो बैठे; उन के चेहरे से क्या नक़ाब उठा; होश नक़्स-ए-ख़ुदी है ऐ एहसान ; ला उठा शीशा-ए-शराब उठा।

जिन्दगी में दो मिनट जिन्दगी में दो मिनट कोई मेरे पास न बैठा; आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे; कोई तौफा ना मिला आज तक मुझे; और आज फूल ही फूल दिए जा रहे थे; तरस गया मैं किसी के हाथ से दिए एक कपडे को; और आज नये-नये कपडे ओढ़ाए जा रहे थे; दो कदम साथ ना चलने वाले; आज काफिला बन कर चले जा रहे थे; आज पता चला कि मौत कितनी हसीन होती है; हम तो अस यूँ ही जिए जा रहे थे।

राज़-ए-उल्फत छुपा... राज़-ए-उल्फत छुपा के देख लिया; दिल बहुत जला के देख लिया; और क्या देखने को बाकी है; आपसे दिल लगा के देख लिया; वो मेरे हो के भी मेरे ना हुए; उनको अपना बना के देख लिया; आज उनकी नज़र में कुछ हमने; सबकी नज़र बचा के देख लिया; आस उस दर से टूटती ही नहीं; जा के देखा न जा के देख लिया; फैज़ तक्मील-ए-ग़म भी हो ना सकी; इश्क़ को आज़मा के देख लिया।

किस को क़ातिल मैं कहूँ... किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ; सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ वो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता था; अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ; दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे; ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ; ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी; लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ।

किस को क़ातिल मैं कहूँ... किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ; सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ वो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता था; अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ; दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे; ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ; ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी; लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ।

अपने हाथों की लकीरों में... अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको; मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको; मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने; ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको; ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन; कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको; बादाह फिर बादाह है मैं ज़हर भी पी जाऊँ क़तील ; शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।

तेरे इश्क़ की इन्तहा... तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ; मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ; सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी; कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ; ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को; कि मैं आप का सामना चाहता हूँ; कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल; चिराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ; भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी; बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ।

कुछ और दिन अभी इस जा क़याम करना था; यहाँ चराग़ वहाँ पर सितारा धरना था; वो रात नींद की दहलीज़ पर तमाम हुई; अभी तो ख़्वाब पे इक और ख़्वाब धरना था; अगर रसा में न था वो भरा भरा सा बदन; रंग-ए-ख़याल से उस को तुलू करना था; निगाह और चराग़ और ये असासा-ए-जाँ; तमाम होती हुई शब के नाम करना था; गुरेज़ होता चला जा रहा था मुझ से वो; और एक पल के सिरे पर मुझे ठहरना था।

इन आँखों से दिन रात... इन आँखों से दिन रात बरसात होगी; अगर ज़िंदगी सर्फ-ए-जज़्बात होगी; मुसाफ़िर हो तुम भी मुसाफ़िर हैं हम भी; किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी; सदाओं की अल्फ़ाज़ मिलने ना पायें; ना बादल घेरेंगे ना बरसात होगी; चिरागों को आँखों मे महफूज रखना; बड़ी दूर तक रात ही रात होगी; अजल-ता-अब्द तक सफर हीं सफर है; कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी।

कलकत्ते का जो ज़िक्र... कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं; इक तीर मेरे सीने में मारा के हाये हाये; वो सब्ज़ा ज़ार हाये मुतर्रा के है ग़ज़ब; वो नाज़नीं बुतान-ए-ख़ुदआरा के हाये हाये; सब्रआज़्मा वो उन की निगाहें के हफ़ नज़र; ताक़तरूबा वो उन का इशारा के हाये हाये; वो मेवा हाये ताज़ा-ए-शीरीं के वाह वाह; वो बादा हाये नाब-ए-गवारा के हाये हाये।