जब रूख़-ए-हुस्न से... जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा; बन के हर ज़र्रा आफ़्ताब उठा; डूबी जाती है ज़ब्त की कश्ती; दिल में तूफ़ान-ए-इजि़तराब उठा; मरने वाले फ़ना भी पर्दा है; उठ सके गर तो ये हिजाब उठा; शाहिद-ए-मय की ख़ल्वतों में पहुँच; पर्दा-ए-नशा-ए-शराब उठा; हम तो आँखों का नूर खो बैठे; उन के चेहरे से क्या नक़ाब उठा; होश नक़्स-ए-ख़ुदी है ऐ एहसान ; ला उठा शीशा-ए-शराब उठा।

यार था गुलज़ार था... यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था; लायक़-ए-पा-बोस-ए-जाँ क्या हिना थी मैं न था; हाथ क्यों बाँधे मेरे छल्ला अगर चोरी हुआ; ये सरापा शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना थी मैं न था; मैंने पूछा क्या हुआ वो आप का हुस्न्-ओ-शबाब; हँस के बोला वो सनम शान-ए-ख़ुदा थी मैं न था; मैं सिसकता रह गया और मर गये फ़रहाद-ओ-क़ैस; क्या उन्हीं दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी मैं न था।

महक उठा है आँगन... महक उठा है आँगन इस ख़बर से; वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से; जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम; दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे; मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था; उतारे कौन अब दीवार पर से; गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की; मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से; उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद; हमारी चाँदनी छाए तो तरसे; मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान; कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से।

पहले तो अपने दिल की... पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइए; फिर जो निगाह-ए-यार कहे मान जाइए; पहले मिजाज़-ए-राहगुजर जान जाइए; फिर गर्द-ए-राह जो भी कहे मान जाइए; कुछ कह रहीं हैं आपके सीने की धड़कनें; मेरी सुनें तो दिल का कहा मान जाइए; इक धूप सी जमी है निगाहों के आसपास; ये आप हैं तो आप पे कुर्बान जाइए; शायद हुजूर से कोई निस्बत हमें भी हो; आँखों में झांककर हमें पहचान जाइए!

पहले तो अपने दिल की... पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइए; फिर जो निगाह-ए-यार कहे मान जाइए; पहले मिजाज़-ए-राहगुजर जान जाइए; फिर गर्द-ए-राह जो भी कहे मान जाइए; कुछ कह रहीं हैं आपके सीने की धड़कनें; मेरी सुनें तो दिल का कहा मान जाइए; इक धूप सी जमी है निगाहों के आसपास; ये आप हैं तो आप पे कुर्बान जाइए; शायद हुजूर से कोई निस्बत हमें भी हो; आँखों में झांककर हमें पहचान जाइए।

बदला न अपने आपको... बदला न अपने आपको जो थे वही रहे; मिलते रहे सभी से अजनबी रहे; अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी; हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे; दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम; थोड़ी बहुत तो जे़हन में नाराज़गी रहे; गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो; जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे; हर वक़्त हर मकाम पे हँसना मुहाल है; रोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे।

जो मिलेगा... कभी दोस्ती कहेंगे कभी बेरुख़ी कहेंगे; जो मिलेगा कोई तुझसा उसे ज़िन्दगी कहेंगे; तेरा देखना है जादू तेरी गुफ़्तगू है खुशबू; जो तेरी तरह चमके उसे रोशनी कहेंगे; जो मिलेगा.... नए रास्ते पे चलना है सफ़र की शर्त वरना; तेरे साथ चलने वाले तुझे अजनबी कहेंगे; जो मिलेगा... है उदास शाम राशीद नहीं आज कोई क़ासिद; जो पयाम उसका लाए उसे चांदनी कहेंगे; जो मिलेगा...

ऐसे हिज्र के मौसम... ऐसे हिज्र के मौसम अब कब आते हैं; तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं; जज़्ब करे क्यों रेत हमारे अश्कों को; तेरा दामन तर करने अब आते हैं; अब वो सफ़र की ताब नहीं बाक़ी वरना; हम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं; जागती आँखों से भी देखो दुनिया को; ख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं; काग़ज़ की कश्ती में दरिया पार किया; देखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं।

साकी शराब ला... साकी शराब ला कि तबीयत उदास है; मुतरिब रबाब उठा कि तबीयत उदास है; चुभती है कल वो जाम-ए-सितारों की रोशनी; ऐ चाँद डूब जा कि तबीयत उदास है; शायद तेरे लबों की चटक से हो जी बहाल; ऐ दोस्त मुसकुरा कि तबीयत उदास है; है हुस्न का फ़ुसूँ भी इलाज-ए-फ़सुर्दगी; रुख़ से नक़ाब उठा कि तबीयत उदास है; मैंने कभी ये ज़िद तो नहीं की पर आज शब-ए-महजबीं न जा कि तबीयत उदास है।

उस शाम वो रुखसत का... उस शाम वो रुखसत का समां याद रहेगा; वो शहर वो कूचा वो मकां याद रहेगा; वो टीस कि उभरी थी इधर याद रहेगा; वो दर्द कि उभरी थी उधर याद रहेगा; हाँ बज़्में-शबां में हमशौक जो उस दिन; हम थे तेरी जानिब निगरा याद रहेगा; कुछ मीर के अबियत थे कुछ फैज़ के मिसरे; एक दर्द का था जिनमे बयाँ याद रहेगा; हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे; तू याद रहेगा हमें हाँ याद रहेगा।

तस्वीर का रुख तस्वीर का रुख एक नहीं दूसरा भी है; खैरात जो देता है वही लूटता भी है; ईमान को अब लेके किधर जाइयेगा आप; बेकार है ये चीज कोई पूछता भी है; बाज़ार चले आये वफ़ा भी ख़ुलूस भी; अब घर में बचा क्या है कोई सोचता भी है; वैसे तो ज़माने के बहुत तीर खाये हैं; पर इनमें कोई तीर है जो फूल सा भी है; इस दिल ने भी फ़ितरत किसी बच्चे सी पाई है; पहले जिसे खो दे उसे फिर ढूँढता भी है।

​​​दम लबों पर था​...​दम लबों पर था​ दिलेज़ार के घबराने से​;​ आ गई है जाँ में जाँ​ आपके आ जाने से;​​​तेरा कूचा न छूटेगा​ तेरे दीवाने से​;उस को काबे से न मतलब है​ न बुतख़ाने से​;​ शेख़ नाफ़ह्म हैं​ करते जो नहीं​ क़द्र उसकी​;दिल फ़रिश्तों के मिले हैं​ तेरे दीवानों से​;​मैं जो कहता हूँ​ कि मरता हूँ​ तो फ़रमाते हैं​;​कारे-दुनिया न रुकेगा​ तेरे मर जाने से​।

गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे; गुज़रूँ जो उस गली से तो ठंडी हवा लगे; मेहमान बन के आये किसी रोज़ अगर वो शख़्स; उस रोज़ बिन सजाये मेरा घर सजा लगे; मैं इस लिये मनाता नहीं वस्ल की ख़ुशी; मेरे रक़ीब की न मुझे बददुआ लगे; वो क़हत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनों; जो मुस्कुरा के बात करे आश्ना लगे; तर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उस की अदा क़तील ; मुझको सताये कोई तो उस को बुरा लगे।

गुज़रे दिनों की याद... गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे; गुज़रूँ जो उस गली से तो ठण्डी हवा लगे; मेहमान बनके आए किसी रोज़ अगर वो शख्स; उस रोज़ बिन सजाए मेरा घर सजा लगे; मैं इसलिए मनाता नहीं वस्ल की खुशी; मेरे रकीब की न मुझे बददुआ लगे; वो कहत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनों; जो मुस्कुरा के बात करे आशना लगे; तर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उसकी अदा कतील ; मुझको सताए कोई तो उसको बुरा लगे।

कहाँ तक आँख रोएगी... कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा; मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा; तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना रो चुका हूँ मैं; कि तू मिल भी अगर जाये तो अब मिलने का ग़म होगा; समंदर की ग़लतफ़हमी से कोई पूछ तो लेता; ज़मीन का हौसला क्या ऐसे तूफ़ानों से कम होगा; मोहब्बत नापने का कोई पैमाना नहीं होता; कहीं तू बढ़ भी सकता है कहीं तू मुझ से कम होगा।