जिन्दगी में दो मिनट जिन्दगी में दो मिनट कोई मेरे पास न बैठा; आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे; कोई तोहफा ना मिला आज तक मुझे; और आज फूल ही फूल दिए जा रहे थे; तरस गया मैं किसी के हाथ से दिए एक कपडे को; और आज नये-नये कपडे ओढ़ाए जा रहे थे; दो कदम साथ ना चलने वाले; आज काफिला बन कर चले जा रहे थे; आज पता चला कि मौत कितनी हसीन होती है; हम तो अब तक यूँ ही जिए जा रहे थे।

राहे-दूरे-इश्क़ से​...​​ ​​ ​​ राहे-दूरे-इश्क़ से रोता है क्या​;​​ ​​ आगे-आगे देखिए होता है क्या​​; ​​​​ सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं​;​ ​​​ तुख़्मे-ख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या​​; ​​​​ क़ाफ़िले में सुबह के इक शोर है​;​​ ​​ यानी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या​​; ​​​​ ग़ैरते-युसुफ़ है ये वक़्ते-अज़ीज़​;​ ​​​ मीर इसको रायगाँ खोता है क्या​।

माना कि आदमी को माना कि आदमी को हँसाता है आदमी; इतना नहीं कि जितना रुलाता है आदमी; माना गले से सब को लगाता है आदमी; दिल में किसी-किसी को बिठाता है आदमी; सुख में लिहाफ़ ओढ़ के सोता है चैन से; दुख में हमेशा शोर मचाता है आदमी; हर आदमी की ज़ात अजीब-ओ-गरीब है; कब आदमी को दोस्तो! भाता है आदमी; दुनिया से ख़ाली हाथ कभी लौटता नहीं; कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी।

तेरी महफ़िल में यह कसरत कभी थी; हमारे रंग की सोहबत कभी थी; इस आज़ादी में वहशत कभी थी; मुझे अपने से भी नफ़रत कभी थी; हमारा दिल हमारा दिल कभी था; तेरी सूरत तेरी सूरत कभी थी; हुआ इन्सान की आँखों से साबित; अयाँ कब नूर में जुल्मत कभी थी; दिल-ए-वीराँ में बाक़ी हैं ये आसार; यहाँ ग़म था यहाँ हसरत कभी थी; तुम इतराए कि बस मरने लगा दाग़ ; बनावट थी जो वह हालत कभी थी।

निगाहों का मर्कज़... निगाहों का मर्कज़ बना जा रहा हूँ; मोहब्बत के हाथों लुटा जा रहा हूँ; मैं क़तरा हूँ लेकिन ब-आग़ोशे-दरिया; अज़ल से अबद तक बहा जा रहा हूँ; वही हुस्न जिसके हैं ये सब मज़ाहिर; उसी हुस्न से हल हुआ जा रहा हूँ; न जाने कहाँ से न जाने किधर को; बस इक अपनी धुन में उड़ा जा रहा हूँ; न सूरत न मआनी न पैदा न पिन्हाँ ये किस हुस्न में गुम हुआ जा रहा हूँ।

गुलों के साथ अजल के... गुलों के साथ अजल के पयाम भी आए; बहार आई तो गुलशन में दाम भी आए; हमीं न कर सके तज्दीद-ए-आरज़ू वरना; हज़ार बार किसी के पयाम भी आए; चला न काम अगर चे ब-ज़ोम-ए-राह-बरी; जनाब-ए-ख़िज़्र अलैहिस-सलाम भी आए; जो तिश्ना-ए-काम-ए-अज़ल थे वो तिश्ना-काम रहे; हज़ार दौर में मीना ओ जाम भी आए; बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए ताबाँ ; रह-ए-हयात में ऐसे मक़ाम भी आए।

तोड़ना टूटे हुए दिल का तोड़ना टूटे हुए दिल का बुरा होता है; जिसका कोई नहीं उसका तो खुद होता है; तोड़ना... मांग कर तुमसे खुशी लूं मुझे मंज़ूर नहीं; किसका मांगी हुई दौलत से भला होता है; तोडना... लोग नाहक किसी मजबूर को कहते हैं बुरा; आदमी अच्छे हैं पर वक़्त बुरा होता है; तोड़ना... क्यों मुनीर अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा; जितना तक़दीर में लिखा है अदा होता है; तोड़ना...

मय रहे मीना रहे ग़र्दिश में... मय रहे मीना रहे ग़र्दिश में पैमाना रहे; मेरे साक़ी तू रहे आबाद मयखाना रहे; हश्र भी तो हो चुका रुख़ से नहीं हटती नक़ाब; हद भी आख़िर कुछ है कब तक कोई दीवाना रहे; रात को जा बैठते हैं रोज़ हम मजनूं के पास; पहले अनबन रह चुकी है अब तो याराना रहे; ज़िन्दगी का लुत्फ़ हो उड़ती रहे हरदम रियाज़; हम हों शीशे की परी हो घर परीखाना रहे।

दोनों जहाँ देके वो... दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा; यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें; थक-थक के हर मक़ाम पे दो चार रह गये; तेरा पता न पायें तो नाचार क्या करें; क्या शमा के नहीं है हवाख़्वाह अहल-ए-बज़्म; हो ग़म ही जांगुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें। Translation: नाचार=जिनका बस ना चले हवाख़्वाह=शुभचिंतक अहल-ए-बज़्म=महफिल वाले जांगुदा=जान घुलाने वाला।

दुनिया के ज़ोर... दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन याद आ गये; दो बाज़ुओ की हार के दिन याद आ गये; गुज़रे वो जिस तरफ से बज़ाए महक उठी; सबको भरी बहार के दिन याद आ गये; ये क्या कि उनके होते हुए भी कभी-कभी; फ़िरदौस-ए-इंत्ज़ार के दिन याद आ गये; वादे का उनके आज खयाल आ गया मुझे; शक और ऐतबार के दिन याद आ गये; नादा थे जब्त-ए-गम का बहुत हज़रत-ए- खुमार ; रो-रो जिए थे जब वो याद आ गये।

ए रात सोने दे... ए रात सोने दे यूं तंग ना किया कर; बेकार सवालों में पाबंद ना किया कर; इस के सिवा और भी ज़माने के काम हैं; तु मेरे ख्यालात बे-ढंग ना किया कर; दुनियाँ में और लोग भी बस्ते हैं तन्हा; तु सिर्फ मेरे साथ ही जंग न किया कर; ए रात सोने दे यूँ तंग ना किया कर; मज़बूत हूँ पर इतना भी नहीं हूँ; दुनिया के सभी ग़म मेरे संग ना किया कर; ए रात सोने दे यूँ तंग न किया कर।

क्या भला मुझ को​... ​​ ​ क्या भला मुझ को परखने का नतीज़ा निकला ;​​​ ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला​;​​​​​ तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने​;​ तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला​;​​​ जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने​;​ बू​-​उड़ी धूप से तसवीर से साया निकला​;​​​ तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर​;​​ डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला​​।

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ ​....​​ ​ ​अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा​;​ जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा​;​ ​​​​ मरने की अय दिल और ही तदबीर कर कि मैं;​ शायान-ए-दस्त-ओ-बाज़ु-ए-का़तिल नहीं रहा​;​​ ​ वा कर दिए हैं शौक़ ने बन्द-ए-नकाब-ए-हुस्न​;​ ग़ैर अज़ निगाह अब कोई हाइल नहीं रहा​;​ ​​ बेदाद-ए-इश्क़ से नहीं डरता मगर असद ​;​​ जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा।

ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है; तेरा मिलना भी मुझ को खल रहा है; जिसे मैंने किया था बे-ख़ुदी में; जबीं पर अब वो सजदा जल रहा है; मुझे मत दो मुबारक-बाद-ए-हस्ती; किसी का है ये साया चल रहा है; सर-ए-सहरा सदा दिल के शजर से; बरसता दूर एक बादल रहा है; फ़साद-ए-लग़्ज़िश-ए-तख़लीक़-ए-आदम; अभी तक हाथ यज़दाँ मल रहा है; दिलों की आग क्या काफ़ी नहीं है; जहन्नम बे-ज़रूरत जल रहा है।

उसकी कत्थई आँखों में... उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सब; चाक़ू-वाक़ू छुरियाँ-वुरियाँ ख़ंजर-वंजर सब; जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं; चादर-वादर तकिया-वकिया बिस्तर-विस्तर सब; मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है; फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े ज़ेवर-वेवर सब; आखिर मै किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते है; कश्ती-वश्ती दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब।