किन चिरागों की बात करते हो
सब चिरागों तले अँधेरा है

ऐसे जख्मों का क्या करे कोई
जिन्हें मरहम से आग लग जाए

यूं न पढ़िए कहीं कहीं से हमें
हम इंसान हैं किताब नही

जी भर गया है तो बता दो
हमें इनकार पसंद है इंतजार नहीं

कांटे तो नसीब में आने ही थे
फूल जो हमने गुलाब चुना था

जलने लगा है जमाना सारा
क्योंकी चलने लगा है नाम हमारा

मुहब्बत तो बस तुमसे की है
औरों से तो बस समझोता करेंगे

वो मुजे नफ़रत करें या प्यार करें
मैं तो एक दीवाना हूँ

हमने समंदर पे राझ किया है
ईसि लिए लोग सङको पे महफुज है

महोब्बत रहे ना रहे
स्कुल की बेन्च पर तेरा नाम आज भी है

रख लेता शहर को अपनी जेब में
अगर तेरी वफा बेवफा ना होती

हम शरारती बेइंतेहा थे...!
.
.
.
अब तन्हा भी बेमिसाल है...!!

ख़ामोशी बहुत कुछ कहती हे
कान लगाकर नहीं दिल लगाकर सुनो

शौक था अपना-अपना..
किसी ने इश्क किया,
तो कोई जिंदा रहा…

जब भी चाहा सिर्फ तुम्हे चाहा
पर कभी तुम से कुछ नही चाहा