हर रोज हर वक़्त तेरा ही ख्याल
ना जाने किस कर्ज की क़िस्त हो तुम।

मोहब्बत और मौत की पसंद भी अजीब हे
एक को दिल चाहिये दुसरे को धडकन

वो पूछते हैं क्या नाम है मेरा…
मैंने कहा बस अपना कहकर पुकार लो…!

मेरे दिल से खेल तो रहे हो पर
ज़रा संभल के टूटा हुआ है कहीं लग ना जाए

वो मंदिर भी जाता है और मस्जिद भी
परेशान पति का कोई मज़हब नहीं होता

वाह रे जिंदगी भरोसा तेरा एक पल का नहीं
और नखरे तेरे मौत से भी जयादा

इतने भी प्यारे नही हो तुम
ये तो मेरी चाहतों ने सर चढ़ा रखा है तुमको

हमने दिल वापस मांगा तो वो सर झुका कर बोली , वो तो टूट गया खेलते खेलते ।।

मैं जख्म जख्म हूँ जाकर मिलू कीससे ? नमक से तर कपडे यहाँ सब पहेने हुए हैं..

हुस्न वाले जब तोड़ते हैं दिल किसी का, बड़ी सादगी से कहते है मजबूर थे हम..!

बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं..
अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती.

कौन देता है उम्र भर का सहारा
लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं!

चीर कर बहा दो लहू, दुश्मन के सीनेका...
यही तो मजा है, हिन्दू होकर जीने का..!!!

जिस घाव से खून नहीं निकलता,,
समज लेना वो ज़ख्म किसी
अपने ने ही दिया है...!!!

पहचान कफ़न से नहीं होती है
लाश के पीछे काफिला बयाँ कर देता है हस्ती को